विकास दुबे का एनकाउंटर……
सत्ताधारियों की साजिश या शिकार।
शक के घेरे में मध्यशप्रदेश का पुलिस प्रशासन।
अपराधी मरा, पर अपराध जिंदा है।
सवाल खड़ा करता एनकाउंटर:
विजया पाठक एडिटर जगत विज़न।
कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपी कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे का आज एसटीएफ उत्तरप्रदेश ने एनकाउंटर कर दियाl विकास दुबे पिछले एक सप्ताह से पुलिस की दर्जनों टीमों को चकमा देते हुए और 4 राज्य की सीमा को पार करते हुए गुरूवार को उज्जैन के महाकाल मंदिर में सरेंडर या गिरफ्तार हुआ था। जिस नाटकीय ढंग से वह गिरफ्तार या सरेंडर हुआ ठीक उसी नाटकीय ढंग से विकास का एनकाउंटर हुआ। विकास दुबे का एनकाउंटर होते ही सारे देश में राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन सवालों के घेरे में है। सबसे पहला सवाल तो विकास दुबे की गिरफ्तारी हुई है या उसने सिलेंडर किया है? अभी तक साफ नहीं हुआ है। दूसरा सवाल मध्यप्रदेश पुलिस और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की कारगुजारी पर उठ रहे हैं। जब विकास दुबे मध्यप्रदेश में गिरफ्तार हुआ तो उसे मध्यप्रदेश में ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश क्यों नहीं किया गया। उसे उत्तरप्रदेश एसटीएफ को क्यों सौंपा गया और तीसरा सबसे प्रमुख सवाल एनकाउंटर को लेकर है। मीडिया की रोक और गाड़ी पलटने जैसे तमाम कारण एक एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह तमाम सवाल ऐसे हैं जो सत्ताधारियों की साजिश की ओर इशारा करते हैं। तमाम पहलुओं पर यदि बारीकी से गौर किया जाए तो निश्चित रूप से विकास दुबे का एनकाउंटर एक प्रायोजित एनकाउंटर साबित हो रहा है, जिसमें उत्तरप्रदेश सरकार और मध्यप्रदेश सरकार दोनों संदेह के घेरे में हैं।
इससे पहले कि हम एनकाउंटर पर और चर्चा करें उससे पहले विकास दुबे को इतना बड़ा कुख्यात गैंगस्टर बनने की कहानी पर गौर करें। विकास दुबे कभी एक आम इंसान हुआ करता था। राजनीतिक संरक्षण और सत्ताधारियों की राह की सीढ़ियों पर चढ़कर आज वह यूपी का खौफनाक चेहरा बनकर उभरा है। 2001में विकास दुबे ने कानपुर थाने में एक वरिष्ठ नेता की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस समय थाने में कोई 30 पुलिसकर्मी मौजूद थे। वह सभी इस वारदात के चश्मदीद गवाह थे लेकिन विकास दुबे को राजनितिक पहुंच और संरक्षण इतना था कि 30 में से कोई भी गवाही देने को तैयार नहीं हुआ और विकास दुबे जघन्य अपराध करने के बाद भी बरी हो गया। बस यहीं से उसका गुंडागर्दी का कारोबार दिनोंदिन बढ़ता गया। पुलिस प्रशासन में उसका खौफ़ था। बड़े-बड़े पुलिस अफसर उसके काले कारनामों में मदद करने लगे। यहां तक कि सत्ताधारी नेता भी उसका सपोर्ट करने लगे। विकास दुबे सिर्फ गुनाहों की दुनिया तक सीमित नहीं रखना चाहता था बल्कि उसकी मंशा राजनीति में भी थी। लगभग सभी दलों के नेताओं के साथ उसका उठना बैठना था। विकास 25 साल से राजनीतिक दलों का हिस्सा रहा था। वह 15 साल बीएससी के साथ रहा, 5 साल बीजेपी और 5 साल सपा में था। शायद इसलिए कोई भी दल विकास के खिलाफ खुलकर बोलने से संकोच कर रहा है। मतलब साफ है कि किसी आम आदमी को कुख्यात बनाने में राजनीतिक लोगों का पूरा-पूरा साथ होता है और अपना उल्लू सीधा करा लेते हैं। कुछ ऐसा ही विकास दुबे के साथ हुआ है।
दहशतगर्द विकास दुबे को राजनीतिक संरक्षण के साथ कारोबारियों का भी साथ मिला। कानपुर से लेकर दिल्ली, फरीदाबाद और मध्यप्रदेश में उसको इन्हीं लोगों ने संरक्षण दिया। फरार करने में मदद की और एक शहर से दूसरे शहर पहुंचाने में भी साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विकास की गिरफ्तारी के बाद यूपी से लेकर मध्यप्रदेश के कई नेता और कारोबारी रडार पर आ गए हैं। विकास दुबे की राजनीति में अच्छी पैठ है। प्रदेश के बड़े नेताओं से भी संपर्क है। कई नेता, विधायक उसके घर पर जाकर हाजिरी तक लगाते थे। इससे संबंधित तमाम फोटो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुई हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेताओं का वह बेहद करीबी रहा है। वह खुद और उसकी पत्नी राजनीति में हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक पूछताछ में उसने बताया कि 8 पुलिसकर्मियों की हत्या की वारदात के बाद अपने करीबी नेताओं और कारोबारियों से संपर्क किया। उन्हीं में से किसी ने गाड़ी तो किसी ने रहने का ठिकाना बताया। कानपुर की वारदात को अंजाम देने के बाद विकास कई सत्ताधारी नेताओं के भी संपर्क में रहा। पूछताछ में भी उसने इस संबंध में जानकारी दी।
उत्तरप्रदेश के कानपुर में पुलिसकर्मियों को मौत की नींद सुलाने वाले कुख्यात अपराधी विकास दुबे को जब एनकाउंटर का दर्द सताने लगा तो उसने बाबा महाकाल की शरण ली। विकास को गुरुवार सुबह उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया या उसने खुद सरेंडर किया यह सवाल एक पहेली बना हुआ है। पुलिस जहां एक ओर गिरफ्तारी की बात कहकर अपनी पीठ थपथपा रही है वहीं सूत्र बताते हैं कि उसने पुलिस के सामने जाकर खुद अपनी पहचान बताकर सरेंडर किया था। पूरे मामले में पुलिस अभी तक पांच लोगों को एनकाउंटर कर मौत की नींद सुला चुकी थी। वहीं विकास के दो करीबियों को पैर में गोली मारकर गिरफ्तार भी किया। अपने साथियों की मौत और गिरफ्तारी के बाद से विकास को कहीं न कहीं अहसास हो गया था कि पुलिस उसको मारकर आठ पुलिसकर्मियों की शहादत का बदला जरूर लेगी। अपने एनकाउंटर के डर से विकास ने गुरुवार को बाबा महाकाल की शरण ली और वहीं से गिरफ्तार हो गया।
एनकाउंटर का मध्यप्रदेश कनेक्शन:
विकास दुबे की एनकाउंटर की कड़ी को मध्यप्रदेश से भी जोड़ा जा रहा हैl विकास दुबे का उज्जैन आना यहां आकर उसका सरेंडर करना और एक दिन पहले उज्जैन कलेक्टर और एसपी का महाकाल मंदिर में जाना, ऐसे सवाल हैं जो इशारा करते हैं कि जानबूझकर विकास दुबे को उज्जैन लाया गया हो। इन सबके बीच मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और पुलिस प्रशासन की कार्रवाई संदेह के घेरे में आ रही हैl प्रदेश के गृहमंत्री, विकास दुबे की गिरफ्तारी पर पुलिस की वाहवाही कर रहे हैं लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि गिरफ्तारी के बाद प्रदेश के पुलिस प्रशासन की क्या जिम्मेदारी बनती है। सीआरपीसी की धारा 72 के मुताबिक अगर किसी अपराधी या आरोपी को दूसरे राज्य की पुलिस गिरफ्तार करती है, तो 24 घंटे के अंदर वहां की स्थानीय अदालत में पेश किया जाना जरुरी होता है। उसी स्थान में कोर्ट से रिमांड लेकर ही दूसरे राज्य की पुलिस उसे अपने राज्य में ले जाती है। लेकिन मध्यप्रदेश पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया। ना ही गृहमंत्री ने इस कानूनी प्रक्रिया पर ध्यान दिया। प्रदेश के विपक्षी भी मध्यप्रदेश सरकार के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं। इनका आरोप है कि नरोत्तम मिश्रा का भी यूपी कनेक्शन रहा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि प्रदेश के गृहमंत्री ने कानून का पूरा मजाक उड़ाया है। शायद वह चाहते हैं कि विकास दुबे को एसटीएफ को सौंप दिया जाए और एसटीएफ विकास दुबे का जो चाहे वह करें और किसी भी तरह मेरा और विकास दुबे का कनेक्शन हमेशा के लिए खत्म हो जाए। आनन-फानन में विकास दुबे को एसटीएफ को सौंपना कई तरह के इशारे बता रहे हैं।
संदेह के घेरे में योगी की कार्यप्रणाली:
अभी साल भर पहले ही यानी 2019 में योगी सरकार ने हर जिला पुलिस को अपने-अपने जिले के टॉप 10 अपराधियों की सूची बनाने को कहा था। इसके लिए पैमाना ये था कि जिस किसी पर भी छह से ज्यादा मुकदमे होंगे। उसका नाम इस सूची में शामिल होगा। पर कमाल देखिए 150 मुकदमे वाला विकास दुबे, उसके भाई और कज़िन अतुल दुबे, दीपु दुबे और संजय दुबे का नाम इस लिस्ट में शामिल ही नहीं किया गया। इंसाफ की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी होती है ये तो सबने देखा मगर कानून इतना अंधा हो सकता है, यकीन नहीं होता। योगी सरकार के ऑपरेशन क्लीन के दौरान कानपुर के एसएसपी अनंत देव अपने ज़िले में अपराधियों का दनादन एनकाउंटर करते घूम रहे थे। कहते हैं उन्होंने 160 से ज़्यादा एनकाउंटर किए। ज्यादातर अपराधियों के पैरों पर गोली मारी। लेकिन विकास दुबे को कभी खरोंच तक नहीं आई। या यूं कहें कि पुलिस का ये ऑपरेशन बिकरू गांव तक पहुंचने से पहले ही ख़त्म हो गया। एक तरफ जहां उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं वहीं विकास दुबे जैसे गुंडों को संरक्षण देने वाले नेताओं और अफसरों पर आंख बंद किए हुए हैं। इसी दोहरी नीति के भरोसे कैसे प्रदेश अपराधमुक्त बन सकता है। पक्षपात करने से तो और स्थितियां बिगड़ेगी। केंद्र सरकार को भी सीएम योगी की कार्यप्रणाली पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
मप्र पुलिस ने विकास को कोर्ट में पेश नहीं किया:
विकास को उज्जैन में मध्यप्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया। इसके बाद यह चर्चा रही कि विकास को उज्जैन में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा लेकिन बाद में उसे सीधे यूपी एसटीएफ के हवाले कर दिया गया। गुरुवार दिनभर चर्चा रही कि विकास दुबे को चार्टर्ड प्लेन से पुलिस कानपुर ले जाएगी लेकिन शाम तक तस्वीर पलट गई और बताया गया कि यूपी एसटीएफ विकास को सड़क मार्ग से ले जाएगी।
मीडिया की गाड़ियां एसटीएफ़ के काफिल के पीछे थीं:
यूपी एसटीएफ विकास दुबे को सड़क मार्ग से लेकर निकली तो मीडिया की कई गाड़ियां काफिले के पीछे थी। मीडिया कर्मियों ने बताया कि रास्ते में तेज बारिश हो रही थी। मध्यप्रदेश में हाईवे पर एक ढाबे पर एसटीएफ की टीम ने खाना भी खाया। मीडियाकर्मी भी यहीं रुके तो एसटीएफ के अधिकारियों ने कहा कि मीडिया पुलिस की गाड़ियों का पीछा ना करें। रात करीब 3:15 बजे झांसी बॉर्डर पर एसटीएफ की टीम ने फिर कोशिश की मीडिया के लोग उसके काफिले से अलग हो जाएं लेकिन मीडियाकर्मी पुलिस के काफिले के पीछे उरई फिर कानपुर देहात तक लगे रहे।
कानपुर शहर की सीमा पर मीडियाकर्मी पुलिस के काफिले से अलग कर दिए गए:
सुबह 6:00 बजे के आसपास कानपुर देहात के बारा टोल प्लाजा पर एसटीएफ का काफिला आगे निकल गया, लेकिन काफिले के पीछे चल रहे मीडियाकर्मियों की गाड़ी को सचेंडी पुलिस थाने की पुलिस ने रोक दिया। मीडियाकर्मियों ने पुलिस से बहस की तो कहा गया कि रास्ता सभी के लिए बंद कर दिया गया है। इसके बाद हाईवे पर बाकी वाहन भी रोक दिए गए। काफिले के रोके जाने पर मीडियाकर्मी पुलिस से बहस कर रहे थे कि करीब 15 मिनट बाद सूचना आती है कि विकास दुबे को ले जा रही एसटीएफ की गाड़ी पलट गई। इस पर थोड़ी देर बाद थाना पुलिस और मीडियाकर्मी आगे बढ़ते हैं। करीब 30 मिनट का रास्ता तय करने के बाद मीडिया के लोग घटनास्थल पर पहुंचते हैं। वहां एसटीएफ की गाड़ी पलटी पड़ी थी। पूछने पर एसटीएफ के लोगों ने बताया कि गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे ने भागने का प्रयास किया। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में वह घायल हो गया। उसे अस्पताल भेजा गया है। इसके थोड़ी देर बाद सूचना आती है कि अस्पताल में डॉक्टरों ने विकास को मृत घोषित कर दिया।
सत्ता के ठेकेदार देते हैं विकास दुबे जैसों को जन्म:
आज सारे देश में विकास दुबे के एनकाउंटर की चर्चा हो रही है। सत्ता पक्ष इसे कानूनी प्रक्रिया बता रहे हैं तो विपक्ष इसे कानून का उल्लंघन बता रहे हैं। इस तमाम आरोप प्रत्यारोप के बीच एक बार जरूर निकल कर आ रही है कि सत्ता के इन ठेकेदारों के कारण ही विकास दुबे जैसे अपराधी जन्म लेते हैं। सत्ता के यह रखवाले पहले इन्हें बढ़ाते हैं और फिर जब यह अपने लिए नुकसानदायक हो जाते हैं तो फर्जी एनकाउंटर कर मरवा डालते हैं। विकास दुबे के साथ कुछ ऐसा हुआ है। सभी पहलुओं को देखकर लगता है कि विकास दुबे का एनकाउंटर प्रायोजित था। इस एनकाउंटर में भले ही पुलिस प्रशासन का गुस्सा आ रहा है या सत्ताधारियों की साजिश रही हो। इस बात का डर विकास दुबे को भी था कि यूपी पुलिस उसका एनकाउंटर करेगी। एनकाउंटर को लेकर पुलिस द्वारा जो स्टोरी बताई जा रही है वह पूरी की पूरी मनगढ़ंत हैं।
मैं अपराध और अपराधी की पक्षधर नहीं हूं। मैं भी चाहता हूँ कि समाज अपराधमुक्त बने। अपराधियों को सजा मिले। लेकिन मैं मानता हूं कि विकास दुबे के एनकाउंटर से अपराधी तो खत्म हो गया लेकिन अपराध नहीं। क्योंकि अपराध को पालने-पोसने वाले अभी कानून के शिकंजे से दूर हैं। निश्चित रूप से विकास दुबे ने जघन्यस अपराध किया था। उसे सजा मिलनी चाहिए थी। वह सजा कानून के माध्यम से भी मिलती। यदि राजनीतिक संरक्षण ना मिलता तो वह सजा कानून के माध्यम से मिल जाती। मेरा यही कहना है कि अपराधी उससे पहले उसे पालने पोसने वालों का एनकांउटर होना चाहिए। आज विकास दुबे है, कल और किसी के साथ भी ऐसा होगा। जो कहीं ना कहीं हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित नहीं है।
साभार: विजया पाठक वरिष्ठ पत्रकार।