आत्महत्या घोर महापाप है लाखो वर्षो तक में भटकती है आत्मा: पंडित सुरेन्द्र शास्त्री कुसुम

आत्महत्या घोर महापाप है लाखो वर्षो तक में भटकती है आत्मा: पंडित सुरेन्द्र शास्त्री कुसुम

उदयपुरा से पर्वत सिंह राजपूत की रिपोर्ट।

उदयपुरा। उदयपुरा नगर में नर्मदा दुर्गा उत्सव समति के तत्वाधान में प्रतिदिन कथा कथा का वाचन पंडित सुरेन्द्र शास्त्री के द्वारा श्रोताओं को सुनाई जा रही है। जिसमें आज की कथा के प्रशंग में आत्म हत्या को महापाप बताया गया है। आत्महत्या करने वालों की आत्मा कई योनियों में भटकती रहती है। लेकिन क्या आत्महत्या से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। पुराणों के अनुसार ‘मोक्ष’ कर्मों की पूर्ति का परिणाम होता है। कर्मफल को पूर्ण किए बिना मोक्ष प्राप्ति असंभव है। पुराणों में आत्मघात और आत्महत्या को लेकर क्या कहा गया है।

Suicide is a great sin, the soul wanders for millions of years

मृत्यु के बादः क्या कहता है गरुड़ पुराण:

हिंदू धर्म के 18 पुराणों में एक है गरुड़ पुराण। इस पुराण में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को जीवन मृत्यु का रहस्य बताया है। इस पुराण में मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार मिलने वाले दंडों के बारे में भी बताया गया है। यह पुराण कहता है कि अपने कर्मों का परिणाम हर हाल में भोगना पड़ता है। जीवन से भगाने का प्रयास करने पर भी इनसे बच नहीं सकते बल्कि आत्मघात के परिणाम और कष्टकारी होते हैं। आत्मघात किसी भी तरह से मोक्ष नहीं दिला सकता है। विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करने का ज्ञान दिया है ना कि आत्मघात का।

आत्महत्या के बाद न स्वर्ग मिलता है न नरक:

आत्महत्या का दंड क्या होता है इस विषय में गरुड़ पुराण में बताया गया है कि ऐसे लोगों की आत्मा को घोर यातनाओं से गुजरना पड़ता है। ये ऐसे लोक में जाते हैं जहां ना रोशनी होती है ना जल। आत्मा जल के लिए तड़पती रहती है और अपने किए कर्मों को याद करके रोती रहती है।

आत्महत्या के बाद का कष्ट:

वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के लिए एक श्लोक लिखा गया है, जो इस प्रकार है…
असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता।
तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

इसका अर्थ है कि ”आत्महत्या हत्या करने वाला मनुष्य अज्ञान और अंधकार से भरे, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।”

आत्महत्या से भी पीछा नहीं छोड़ती समस्याएं:

धर्मग्रंथों के अनुसार जिन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है, उनका हल उसे जिंदा रहने पर तो मिल सकता है लेकिन आत्महत्या करके अंतहीन कष्टों वाले जीवन की शुरुआत हो जाती है। इन्हें बार-बार ईश्वर के बनाए नियम को तोड़ने का दंड भोगना पड़ता है।

आत्महत्या के बाद ऐसा जीवन:

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आत्महत्या के बाद आत्मा को भूत-प्रेत-पिशाच जैसी कई योनियों में भटकना पड़ता है। यदि आत्महत्या से पहले व्यक्ति की कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो उसकी पूर्ति के लिए उसे फिर से जन्म लेना होता है। इस बीच आत्मा को कई प्रकार के नरक से गुजरना पड़ता है।

तब तक नहीं मिलती है आत्मा को मुक्ति:

पुराणों के अनुसार, जन्म और मृत्यु प्रकृति के द्वारा चलाया जानेवाला चक्र है, जिसे प्रकृति मनुष्य के कर्मों के आधार पर निर्धारित करती है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति की उम्र 80 साल निर्धारित की गई हो और वह 50 साल की उम्र में आत्महत्या कर ले तो उसकी आत्मा को 30 वर्षों तक मुक्ति नहीं मिलेगी, जब तक उसकी निर्धारित आयु पूरी नहीं हो जाती।

इस तरह तड़पती रहती है आत्मा:

धार्मिक मान्यताएं हैं कि जो व्यक्ति आत्महत्या करता है, उसकी आत्मा न तो स्वर्ग जा सकती है, न नरक और न ही वह वापस अपने खोए हुए जीवन में आ सकती है। ऐसे में वह आत्मा अधर में लटक जाती है और अंधकार में भटकते हुए छटपटाहट भरा जीवन जीती है, तब तक जब तक कि उसकी असल उम्र पूरी नहीं हो जाती।

दर-दर भटकने को मजबूर:

हिंदू धर्म में मान्यता है कि आत्‍महत्‍या करने के बाद जो जीवन होता है वह इस जीवन से ज्‍यादा कष्‍टकारी होता है। आत्मा अधूरेपन की भावना के साथ दर-दर भटकती है। क्योंकि आत्महत्या से उसका जीवन चक्र अधूरा रह जाता है। व्यक्ति की आत्मा को जब नया शरीर मिलता है तब फिर से उन कर्मों को भोगना पड़ता जिससे भागकर उसने आत्मघात किया होता है। यानी कर्मों से भागकर कहीं नहीं जा सकते हैं। जो भी कर्मफल है उसको तो भोगना ही पड़ता है। आत्मघात से कर्मों से मुक्ति नहीं मिलती है बल्कि और भी कष्ट भोगना पड़ता है।

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