हरदा जिले के वनग्राम के आदिवासी को ईलाज और रोजीरोटी का संकट।

हरदा जिले के वनग्राम के आदिवासी को ईलाज और रोजीरोटी का संकट।

हरदा जिले के वनग्रामों में स्थिती काफी खराब है। खासकर बैतूल जिले के चीरापाटला और गवासेन से लगे ढेगा आदि ग्रामों में।

समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी ने बताया कि इन ग्रामों का लेनदेन हरदा जिले की सीमा से सटे हुए बैतूल जिले के चीरापाटला और गवासेन कस्बो से था, उस पर रोक लगने से इन्हें जरुरी सामग्री और इलाज की व्यवस्था का संकट हो गया है।

सजप ने जिला प्रशासन से इन वनग्रामों में सभी व्यवस्था तुरंत उपलब्ध कराने एवं रोजगार गारंटी के काम शुरू करने की मांग की। साथ ही, वन विभाग को लोगों को जरुरी सभी सामग्री उपलब्ध कराने की मांग की।

इस इलाके के दर्जन भर से उपर गाँव के लोग फसल कटाई के लिए डीझल लेने से लेकर ईलाज कराने के लिए चीरापाटला और गवासेन जाते हैं।

वन विभाग ने हरदा जिले के ढेगा और बैतूल जिले के महुवाढाना के बीच दोनों जिले के बीच खंती खोद दी है जिसके चलते ईलाज के लिए और अन्य जरुरी सामग्री के लिए आने जाने की दिक्कत हो गई है। इन्हें हरदा जिले का रहटगांव आदि काफी दूर पड़ता है, इसलिए यह इलाज के लिए अपने गाँव से आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित चीरापाटला जाते और बाकी सामग्री के लिए चीरापाटला और गवासेन।

गाँव वालों के अनुसार वन विभाग ने उन्हें सिर्फ एक-एक साबुन दिया था और एक बार गाडी में कुछ दुकानदारों को लाए थे जिससे तेल मसाला आदि सामग्री खरीदने को कहा गया था।

ढेगा वनग्राम के इमरत ने बताया की पिछले दिनों उसे ईलाज के लिए लोधीढाना से घुमते हुए किसी तरह चीरापाटला आना पड़ा। इतना ही नहीं, इन ग्रामों के गरीब आदिवासी इस मौसम में महुआ बीनने के लिए गवासेन और टांडाजोड़ से सटे बैतूल जिले के जंगलो में जाते थे। उन इलाकों में लोग कम और महुआ के पेड़ ज्यादा होने से लोग यहाँ बारिश से अपना गुजारा करने लायक महुआ इक्कठा कर लेते थे।

इस बार वन विभाग ने इन्हें महुआ बींनने नहीं जाने दिया। अब अन्य कोई रोजगार नहीं होने और महुआ बीनने पर इस तरह से रोक लगने से आदिवासीयो पर दोहरी मार पड़ रही है।

इस इलाके में कोरोना के कोई मामले नहीं है एवं बाहर के लोगों की आवाजाही नहीं है, ऐसे में प्रशासन को चाहिए की वो लॉकडाउन व्यवहारिक और मानवीय रूप से लागू करे।

अनुराग मोदी ने कहा की अगर इस तरह से गरीब आदिवासीयों पर रोक लगाने से आने वाले समय में भूखमरी का संकट आ सकता है।

अगर आदिवासीयो में भुखमरी का संकट आया तो वो कोरोना का जल्द शिकार होंगे और कल कोरोना होने पर उससे निपट नहीं पायेंगे।

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