ग्रेसिम उद्योग को प्लांट संचालन अनुमति नहीं देने के संबंध में कलेक्टर और एसडीएम को शिकायत।

ग्रेसिम उद्योग को प्लांट संचालन अनुमति नहीं देने के संबंध में कलेक्टर और एसडीएम को शिकायत।

नागदा से संजय शर्मा की ख़बर

नागदा स्थित मेसर्स ग्रेसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड स्टेपल फाइबर डिवीजन को प्लांट संचालन की अनुमति नहीं दिए जाने के संबंध में असंगठित मजदूर कांग्रेस के प्रदेश संयोजक अभिषेक चौरसिया एवं किसान कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री दीपक शर्मा ने जिला कलेक्टर शशांक मिश्र, नागदा एसडीएम आरपी वर्मा को शिकायत की हैं ।

अभिषेक चौरसिया एवं दीपक शर्मा द्वारा संयुक्त रूप से जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया गया है कि आज हमारे संपूर्ण देश में लॉकडॉउन लगा हुआ हैं और वैश्विक महामारी कोरोना का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा हैं। जिससे हमारा उज्जैन जिला भी काफ़ी प्रभावित हुआ है। मध्यप्रदेश शासन एवं भारत सरकार द्वारा जारी रेड जोन की सूची के अंतर्गत सम्मिलित जिलों की सूची में उज्जैन जिला भी शामिल हैं। जहां मरीजों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही हैं। आज इस महामारी के दौर में संपूर्ण उज्जैन जिले में लॉकडॉउन लागू हैं लेकिन इस स्थिति में भी नागदा स्थित ग्रेसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड स्टेपल फाइबर डिवीजन द्वारा उनके प्लांट के संचालन की अनुमति हासिल करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। जो कि एक गंभीर जांच का विषय है।

ग्रेसिम उद्योग पहले से ही विभिन्न मामलों में संलिप्त फिर प्रशासन द्वारा उन्हें दरकिनार कर अनुमति देना धनबल और बाहुबल को बढ़ावा देना होगा।

नागदा स्थित ग्रेसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड स्टेपल फाइबर डिवीजन शहर की सबसे बड़ी ओद्यौगिक इकाई हैं। जिसमें हजारों की संख्या में श्रमिक कार्यरत हैं । उक्त उद्योग के विरूद्ध वर्तमान में गंभीर प्रदूषण, शासकीय भूमि पर अतिक्रमण, सीएसआर राशि में 100 करोड़ रुपए के घोटाले, जलवाल तालाब पर अतिक्रमण सहित विभिन्न गंभीर धांधलियों के आरोपों में जांच जारी हैं । यही नहीं इस उद्योग के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली में कई मामले लंबित हैं । लेकिन आज इस महामारी के दौर में भी ग्रेसिम उद्योग अपने निजी हित लाभ के लिए उद्योग के संचालन को शुरू करवाने के लिए प्रयासरत हैं । अगर इस उद्योग का संचालन शुरू किया गया तो हज़ारों की संख्या में श्रमिक उद्योग में आयेंगे और उद्योग के पास ऐसी कोई ठोस व्यवस्था नहीं है कि वे इस महामारी से मजदूरों को बचा सकें । जब शासन द्वारा होटलों, रेस्टोरेंटों, नाई की दुकानों आदि के संचालकों को अनुमति नहीं देने के लिए यह कहा गया हैं कि इससे सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन होगा फिर इस उद्योग को अगर अनुमति दी जाती हैं तो वहां तो हज़ारों की संख्या में मज़दूर जुटेंगे और अगर एक भी मजदूर संक्रमित हो गया तो हज़ारों श्रमिकों एवं उनके परिवरजनों को प्रभावित कर सकता हैं।

रहवासी क्षेत्र, श्रमिक बस्तियां एवं बिरलाग्राम मार्केट सहित अन्य क्षेत्र में संक्रमण का ख़तरा बना रहेगा –

मेसर्स ग्रेसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड स्टेपल फाइबर डिवीजन का प्लांट नागदा नगरपालिका परिषद के अन्तर्गत आता है।

इसके करीब रहवासी कॉलोनी, श्रमिक बस्तियों सहित बिरला ग्राम मार्केट भी आता है। ओद्यौगिक क्षेत्र बताकर इस उद्योग के संचालन के लिए भ्रामकता फैलाई जा रही हैं। इस उद्योग के मुख्य गेट के सामने भी श्रमिक बस्ती हैं। यहाँ हजारों लोग निवास करते हैं। ऐसी स्थिति में अगर कोई मजदूर संक्रमित हुआ तो पूरा क्षेत्र प्रभावित होगा।

पीएम केयर फंड में 500 करोड़ रुपए दिये लेकिन नागदा शहर एवं चंबल किनारे बसे 22 गांवों को कितने करोड़ रुपए दिए।

पीएम केयर फंड में 500 करोड़ रुपए देने की बात जो ग्रेसिम उद्योग द्वारा की जा रही है उसमें नागदा शहर को कितने करोड़ रुपए इनके द्वारा दिए गए हैं? चंबल नदी किनारे स्थित प्रदूषण पीड़ित 22 ग्राम पंचायतों की जनसंख्या 30 हजार से ज्यादा है लेकिन क्या सबको उद्योग द्वारा राशन दिया गया? क्या नागदा स्थित इंदूभाई पारीख मेमोरियल हॉस्पिटल में इस महामारी के दौर में आम नागरिकों का इलाज़ नि:शुल्क हैं ? नागदा में कितने हज़ार लोगों को मास्क और सेनेटाइजर बाँटा गया है? नागदा में 36 वार्ड में कितने लोगों को राशन बाँटा गया है?

जबकि सत्य यह है कि इन 500 करोड़ की राशि आदित्य बिरला समूह द्वारा दी गई है जिसमें से 400 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनाए पीएम केयर्स फंड में दिए और बाकी के 100 करोड़ रुपये कंपनी मास्क और कोरोना से बचाव के कपड़े बनाने के अलावा सामाजिक शिक्षा और जागरुकता पर खर्च करेगी।

जिसके अंतर्गत आदित्य बिरला समूह की देश और विदेश में स्थित कुल 25 से भी ज्यादा कंपनियों द्वारा संयुक्त रूप 500 करोड़ रुपए दिया गया है। न कि ग्रेसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा अकेले 500 करोड़ रुपए दिए गए हैं।

नागदा के उद्योग अधिकारी उसमें भी झूठा श्रेय लेकर आम नागरिकों को गुमराह कर रहे हैं और उसकी आड़ में उद्योग का संचालन शुरू करना चाहते हैं।

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