मेरी नदियों का जीवन।
रचयिता इंद्राज सिंह थाना प्रभारी बेगमगंज।
कोई लौटाए तो लौटा दे
मेरी नदियों का जीवन ….
जिनमें कलकल बहती थी
कंचन जल की अबिरल धारा
पक्षी करते तट पर कलरव
सरिता रहतीं थीं सदा नीरा
दुहिता तट पर स्वत: होते
प्राकृतिक सुंदर वन उपवन
मन करता था मन से बातें
छिड़ता अंतर्द्वन्द का अतर्मन
कोई लौटा सके तो लौटा दे……
जिन नदियों में होता था
सदा सतत् सरित प्रवाह
उनकी आज दशा देखकर
मुँह से निकलती है आह
सूखी दहार निकली चट्टान
किया नदी का खूब दोहन
मर रहे प्यासे थल नभ चर
नदियों का गया जीवन
कोई लौटाए तो लौटा दे…
मूर्ख मानव यदि तूने किया
नदी उप नदियों का अंत
प्राकृतिक संतुलन बिगड़ेगा
तेरा भी है सुनिश्चत अंत
यदि तू चाहता स्वंय का
सुंदर स्वस्थ सुडौल जीवन
तो न कर प्रकृति का बिगाड़
नदियों को दे नया जीवन
कोई लौटा सके तो लौटा दे……
संकलन: मिथलेश मेहरा रायसेन।