आदिवासी मड़ई मेला पर विशेष सिलवानी रायसेन से श्रीराम सेन की ख़ास ख़बर।
प्रतापगढ़ आदिवासी मड़ई मेला ने रचा इतिहास। गोंडी भाषा का उपयोग।
प्रतापगढ़ में दीपावली के तीज पर मड़ई का बरसों पुराना इतिहास भरा पड़ा है। बुजुर्गों से चर्चा के दौरान बताया कि इस मड़ई मेला को पीढ़ियां गुजर गई हैं।
इस ऐतिहासिक मड़ई मेला का आदिवासी समाज द्वारा जो पूर्वजों का इतिहास को दर्शाता है। इस अवसर पर चन्डी माता एवं प्रकृति की पूजा अर्चना की जाती है। इस मेले का एक विशेष महत्व दीपावली त्यौहार से जुड़ा है इस पूजा का विशेष दर्शन समाज की जात्रा बैठक होती है। जिसका पूरे वर्ष पर असर होता है। इसी दिन देव पूजा एवं प्रकृति के देवता जागृत होते हैं। आदिवासी समाज प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं पर विश्वास करता है जिसे चंद लोग अंधविश्वास की उपमा भी देते हैं लेकिन यह उतना ही सही है। जिस तरह प्रत्येक पौधा पर जो बेल चढ़ती है ठीक उसी प्रकार आटा पीसने की चक्की भी चलती है जिस प्रकार बेल फसलों की दावन करते हैं।
उपर्युक्त प्रमाण प्रकृति के दर्शन से लिए हैं जिन्हें कोई झुठला नहीं सकता इसलिए प्रत्येक आदिवासी किसी ना किसी पेड़ की पूजा करता है। एक और सत्यता है जीवो का भी बड़ा पुजारी आदिवासी समाज है और उसकी वजह आज जीव जंतु जिंदा ही हैं और सरकारों ने भी माना इसलिए पर्यावरण बचाने के लिए आदिवासी समाज को आगे लगाया गया है।
30 वर्षों से लगातार क्षेत्रीय विधायक पूर्व मंत्री ठाकुर रामपाल सिंह बराबर अपना अमूल्य समय देते हैं। ठालो की पूजा अर्चना करते हैं वहीं क्षेत्रीय आदिवासी समाज के नेता कुंवर धर्मवीर सिंह एवं बाबा साहब नीलमणि शाह और उनके पूर्वज इस परंपरा को निभाते हैं।
जब से नीलमणि शाह बालिक हुए तब से वह भी इस समाज की परंपरा पूजा अर्चना में शामिल होते हैं और क्षेत्र के कई गणमान्य नागरिक क्षेत्रवासी महिला पुरुष बच्चों सहित बड़े हर्ष और उल्लास के साथ इस मड़ई मेला में आते हैं। मड़ई मेला के दर्शन कर अपने आपको गौरवान्वित होते हैं एवं प्रकृति को धन्यवाद देते हैं।