श्रीराम नवमी महोत्सव पर विशेष आलेख।
राम जनम के हेतु आने का, परम विचित्र एक तें एका- राजेश्री महन्त जी।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।
धेनु रूप धरि ह्रदय बिचारी, गई तहां जहँ सुर मुनि झारी।
शिवरीनारायण से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट।
दशरथ नंदन प्रभु श्री रामचंद्र जी परात्पर ब्रह्म हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने तो उनके संदर्भ में यहां तक लिखा कि “संभु बिरंचि विष्णु भगवाना, उपजहिं जासु अंस ते नाना।।” जिस परमात्मा का अंशीभूत ब्रह्मा, विष्णु और महेश को माना गया है। उस परमात्मा का इस धरा धाम में मनुष्य के रूप में अवतार किस हेतु से हुआ? इस पर विद्वत जन युग युगांतर से चिंतन करते हुए आ रहे हैं लेकिन कोई भी आज पर्यंत किसी एक ही कारण को हरि के अवतार का कारण निरूपित नहीं कर पाये, भविष्य में यह संभव भी नहीं है कारण कि हरि अवतार हेतु “जेहि होई, ईदमित्थं कहि जाइ न सोई।।” भगवान श्री हरि का इस धरा में किस हेतु से जन्म हुआ यह तो केवल भगवान श्री हरि ही जान सकते हैं।
भगवान रघुनाथ जी बुद्धि और तर्क से परे हैं। यह बातें श्री दूधाधारी मठ एवं श्री शिवरीनारायण मठ पीठाधीश्वर राजेश्री डॉ महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग ने अभिव्यक्त की। वे रामनवमी के उपलक्ष्य में भगवान श्री रामचंद्र जी के जन्म के विषय पर अपना विचार प्रस्तुत कर रहे थे! उन्होंने कहा कि भगवान श्री हरि ने मनुष्य का तन किस कारण से धारण किया? इस संदर्भ में धर्म शास्त्रों में अनेक कारण गिनाए गए हैं। अलग-अलग कल्प में उनके मनुष्य तन धारण करने के अलग-अलग कारण भी बताए गए हैं किंतु श्री रामचरितमानस में मुख्य रूप से गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने जो कारण गिनाए हैं उनमें से एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण यह है कि जब जब पृथ्वी पर अधर्म का राज्य स्थापित हो जाता है! चोर, लंपट, जुआरी, व प्रवृत्ति वाले लोगों की अधिकता इस संसार में हो जाती है तब तब भगवान किसी न किसी रूप में मनुष्य का तन धारण करके धर्म की स्थापना करते हैं।
श्री रामचरितमानस में जिस कल्प में अयोध्या पुरी में भगवान श्री रामचंद्र जी के अवतार धारण करने की कथा का उल्लेख हुआ है। उस कल्प में भी पृथ्वी माता अधर्म से व्याकुल हो गई। परम सभीत धरा अकुलानी। वह मन में विचार करने लगी कि “गिरी सरि सिंधु भार नहीं मोहि, जस मोहि गरुअ एक परद्रोही।।” तब उसने गौ माता का रूप धारण किया “धेनु रुप धरि ह्रदय बिचारी, गई तहां जहँ सुर मुनि झारी।।” गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने आगे लिखा कि “सुर मुनि गंधर्बा मिली करी सर्बा गे बिरंचि के लोका। संग गो तनु धारी भूमि बिचारी परम विकल भय सोका।।” बिरंचि अर्थात ब्रह्मा जी सब कुछ जान गए। उन्होंने गौ माता का रूप धारण किए हुए पृथ्वी से कहा जिसकी तू दासी है वही अविनाशी हमारा और तुम्हारा दोनों का सहायक है। हे धरती मन में धीरज धारण करके श्री हरि के चरणों का सुमिरन करो! सभी देवता गण विचार करने लगे कि प्रभु को हम कहां पाएंगे? उनका दर्शन कहां होगा? देवताओं के उसी समाज में भगवान शंकर जी भी विराजमान थे। उन्होंने देवताओं को मंत्र दिया और कहा कि “हरि व्यापक सर्बत्र समाना, प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना।।” भगवान श्री हरि संसार के कण-कण में समान रूप से व्याप्त मान हैं। वह प्रेम से प्रकट हो जाते हैं, सभी देवता भगवान की स्तुति करने लगे। “जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता, गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधु सुता प्रिय कंता।।” भगवान परात्पर ब्रह्म राघवेंद्र सरकार देवताओं की स्तुति से प्रसन्न हो गए उन्होंने कहा कि “जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा, तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा।।” भगवान ने अपने द्वारा देवताओं को दिए गए वचन को सिद्ध करने के लिए पवित्र चैत्र माह के नवमी तिथि को अवधपुरी में जन्म धारण किया “नवमी तिथि मधु मास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।। मध्यदिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा।।” श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने लिखा कि “विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार।।” दीनों पर दया करने वाले कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए “भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।” यह प्रभु श्री रामचंद्र जी के मनुष्य के नर तन धारण करने के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारणों में से एक है किंतु वास्तविक कारण सिर्फ और सिर्फ भगवान श्रीहरि ही जान सकते हैं। कारण कि ” हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता।।” हरि अनंत है और उसकी कथा भी अनंत हैं। इसे संत महात्मा, ऋषि मुनि गण विविध तरह से कहते और सुनते आ रहे हैं। उनके वास्तविक रहस्य को कोई भी नहीं जान सकता! गोस्वामी जी ने लिखा है कि “पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।” उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति भी श्रीराम संस्कृति से ओतप्रोत है। प्राचीन काल में इस प्रदेश को कौशल प्रांत के रूप में जाना जाता था। इस राज्य को प्रभु श्री रामचंद्र जी के ननिहाल होने का गौरव प्राप्त है।
शिवरीनारायण से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट।