राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में तेंदूपत्ता संग्रहण का आदेश नहीं, ग्रामीण फिर हुए निराश।
भैयाथान से उपेन्द्र सिंह पोया की रिपोर्ट।
भैयाथान उत्तरी छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता संग्रहण ग्रामीण आजीविका संवर्धन का महत्वपूर्ण माध्यम है। तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों को नकद रकम मिलती है और बोनस भी मिलता है, लेकिन सूरजपुर जिले के ओड़गी विकासखंड के कई गांवों में शुरू से ही तेंदूपत्ता का संग्रहण नहीं होता।कोरिया जिले की सीमा से लगे इन गांव के जंगल गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में आते हैं। राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में रिजर्व फारेस्ट होने के कारण तेंदूपत्ता का संग्रहण नहीं होने से गरीब परिवारों को हर वर्ष आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इस वर्ष समस्या और बढ़ गई है। लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूर घरों को लौट आए हैं। गांवों में भी उन्हें रोजगार का अवसर नहीं मिल रहा है, इसलिये प्रशासन से तेंदूपत्ता संग्रहण कराने की मांग की जा रही है ताकि उन्हें राहत मिल सके।
जिले के दूरस्थ चांदनी बिहारपुर क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। शासन की योजनाओं का बेहतर तरीके से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण ग्रामीणों को इसका लाभ भी नहीं मिल पाता है। हर वर्ष खरीफ की खेती के बाद ग्रामीणों को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ता है। इस बार लॉकडाउन के कारण समय से पहले ही ग्रामीणों को वापस लौटना पड़ा है, लेकिन इस क्षेत्र में तेंदूपत्ता की खरीदी नहीं होने से उन्हें ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है। ग्राम पंचायत खोहिर के अंतर्गत आने वाले बैजनपाठ, लुल्ह, भुंडा और तेलाईपाठ में कई दशक से तेंदूपत्ता संग्रहण नहीं होता। इन गांवों का क्षेत्र गुरू घासीदास राष्ट्रीय वन उद्यान कोरिया के अधिनस्थ आता है तथा रिजर्व जंगल होने के कारण विभाग के द्वारा तेंदूपत्ता तोड़ने की अनुमति नहीं दी जाती है। बैजनपाठ, लुल्ह, रसोकी भुंडा एवं तेलाईपाठ पंडो बाहुल्य इलाका है। ये लोग मुख्य रूप से जंगल पर ही निर्भर हैं। तेंदू, चार, महुआ, डोरी, साल बीज से अपना जीवनयापन करते हैं। इसके अलावा एक रोजगार इनका तेंदूपत्ता है। प्रतिवर्ष इन लोगों का इंतजार होता है कि इस वर्ष तेंदूपत्ता बेचकर कुछ लाभ कमाएंगे, लेकिन हर वर्ष इन्हें निराशा ही हाथ लगती है। इस वर्ष भी तेंदूपत्ता का संग्रहण नहीं होने से ग्रामीणों में घोर निराशा है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि तेंदूपत्ता का संग्रहण आरंभ हो जाता तो खाद बीज की व्यवस्था वे कर सकते थे। ये गांव के पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश की सीमा पर ऊंची पहाड़ी पर है, जहां मक्का, कोदो, कुटकी, अरहर की थोड़ी फसल होती है।
आजीविका संवर्धन के लिए कई बार लेना पड़ता है कर्ज
धान की खेती भी सही तरीके से नहीं कर पाते रबी सीजन में भी सिंचाई सुविधा के अभाव में उत्पादन नहीं होने के कारण दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए कर्ज लेना पड़ता है। कर्ज की अदायगी लघु वनोपज की बिक्री कर करते हैं। यदि तेंदूपत्ता का संग्रहण आरंभ हो जाता तो इन्हें थोड़ी राहत मिलती, लेकिन इस साल भी अनुमति नहीं दी गई है। ग्रामीणों ने लॉकडाउन की परिस्थिति को देखते हुए तेंदूपत्ता संग्रहण शीघ्र आरंभ कराए जाने की मांग की है ताकि उन्हें अतिरिक्त आय का साधन मिल सके।
भैयाथान से उपेन्द्र सिंह पोया की रिपोर्ट।