मोदी सरकार की नरसिम्हा राव वाली नीति, जब विपक्ष के नेता वाजपेयी को भेजा था संयुक्त राष्ट्र

नई दिल्ली
सरकार पहलगाम में आतंकवादी हमले के जवाब में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद आक्रामक राजनयिक अभियान शुरू करने का फैसला किया है। इसके तहत वैश्विक मंच पर भारत के पक्ष को मजबूती से रखने और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब किया जाएगा। खास बात है कि इस काम के लिए मोदी सरकार ने नरसिम्हा राव की कूटनीति के रास्ते पर चलने का फैसला लिया है। अगले सप्ताह से विभिन्न देशों में कई बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजेगी। यह ठीक उसी तर्ज पर जब नरसिम्हा राव ने यूएन में कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजयपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भेजा था।
तब यूएन में गिर गया था पाकिस्तान का प्रस्ताव

1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से जुड़े सत्र में एक प्रतिनिधि मंडल भेजने का फैसला किया था। इसका उद्देश्य कश्मीर समस्या पर भारत का पक्ष रखना और पाकिस्तान द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव को विफल करना था, जिसमें नई दिल्ली की निंदा की जाती। उस समय यह प्रयास बहुत सफल रहा था। वाजपेयी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल के हस्तक्षेप के कारण पाकिस्तान का प्रस्ताव गिर गया था।

वाजपेयी की टीम में कौन-कौन थे शामिल

पीवी नरसिम्हाराव ने विदेश नीति के धुरंधर माने जाने वाले विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रतिनिधि मंडल का प्रमुख नियुक्त किया था। उनके साथ कश्मीर के फारूक अब्दुल्ला और राव सरकार के विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद भी थे। संयुक्त राष्ट्र के बारे में गहन जानकारी के साथ प्रतिनिधिमंडल को मजबूत करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन राजदूत हामिद अंसारी को भी शामिल किया गया था।
राव के कदम से परेशान थे खुर्शीद?

अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने छह दशक से अधिक के राजनीतिक करियर में हमेशा व्यक्तिगत समीकरणों पर भरोसा किया। उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ उनकी नजदीकी हमेशा उनके संबंधित राजनीतिक दलों में उत्सुकता भरी चर्चा का विषय रही। राव की तरफ से वाजपेयी को यूएन में भेजने के कदम को उनकी पार्टी के भीतर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली। तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद जिनेवा में वाजपेयी के अधीन काम करने से विशेष रूप से परेशान थे।

वापस लौटने पर हुआ था शानदार स्वागत

जब जेनेवा से जीत हासिल कर भारतीय प्रतिनिधिमंडल राजधानी लौटा तो उसका वैसे ही शानदार स्वागत हुआ जैसा कि आमतौर पर विजयी क्रिकेट टीमों का होता है। राव की इस कूटनीति के तह भारत ने आखिरकार दुनिया को दिखा दिया कि कश्मीर मुद्दे पर उसका इरादा गंभीर है। इस सफलता के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख जावेद मीर को पकड़ लिया गया, जिससे आतंकवादियों के मनोबल को भी गहरा धक्का लगा था।

शशि थरूर पाक के आतंकी चेहरे को बेनकाब करेंगे

भारत सरकार ने एक सात सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का गठन किया है, जो प्रमुख विदेशी सरकारों को हालिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष और इस मुद्दे पर भारत के रुख से अवगत कराने के लिए उन देशों का दौरा करेगा. इस प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर को भी शामिल किया गया है. संसदीय कार्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि तिरुवनंतपुरम से चार बार के सांसद शशि थरूर इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे. नामित अन्य सदस्यों में भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद संजय कुमार झा, डीएमके की कनिमोझी करुणानिधि, राकांपा (शरद पवार गुट) की नेता सुप्रिया सुले और शिवसेना (शिंदे गुट) के सांसद श्रीकांत शिंदे शामिल हैं.

मजे की बात ये है कि इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने के लिए कांग्रेस ने अपने जिन 4 सांसदों के नाम सरकार को सुझाए थे, उनमें से किसी को नहीं चुना गया. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के अनुसार, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने 16 मई की सुबह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से फोन पर बात की थी और उनसे अनुरोध किया था कि वे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर भारत की स्थिति स्पष्ट करने के लिए विदेश भेजे जा रहे प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने के लिए चार नाम सुझाएं. कल 16 मई को दोपहर तक, लोक सभा में विपक्ष के नेता ने संसदीय कार्य मंत्री को पत्र लिखकर कांग्रेस की ओर से आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम दिए. लेकिन केंद्र ने इन चारों को छोड़कर शशि थरूर पर विश्वास जताया.

भारत सरकार का यह सात सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल 23 मई से 10 दिवसीय राजनयिक मिशन पर रवाना होगा. वाशिंगटन, लंदन, अबू धाबी, प्रिटोरिया और टोक्यो जैसी प्रमुख राजधानियों का दौरा करके यह सर्वदलीय टीम आतंकवाद पर भारत की जीरो टॉलरेंस पॉलिसी और ऑपरेशन सिंदूर के तहत हाल के घटनाक्रमों के बारे में विदेशी सरकारों को जानकारी देगी. बता दें कि 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था. इस आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे. इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में जैश, लश्कर और हिजबुल के 9 आतंकी​ ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की थी, जिसमें 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए थे.

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