बानू मुश्ताक ने बुकर प्राइज जीतकर रचा इतिहास, जानें हार्ट लैंप में ऐसा क्या

 नई दिल्ली
  भारतीय लेखिका, वकील और एक्टिविस्ट बानू मुश्ताक ने अपनी किताब 'हार्ट लैंप' के लिए इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता है। बानू मुश्ताक कर्नाटक कीर रहने वाली हैं। बानू मुश्ताक को उनकी कन्नड़ कहानी संग्रह हार्ट लैंप के लिए साल 2025 का प्रतिष्ठित बुकर प्राइज मिला है।

यह पहली बार है, जब कन्नड़ भाषा में लिखी किसी किताब को बुकर प्राइज मिला है। उन्होंने ये किताब जीतकर इतिहास रच दिया। दीपा भष्ठी ने इस किताब का कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया था।

कब और कहां हुआ पुरस्कार का एलान?

पेशे से वकील और पत्रकार, बानू मुश्ताक ने कहानीकार, कवि, उपन्यासकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। 20 मई लंदन के टेट मॉडर्न में आयोजित एक समारोह में इस पुरस्कार का एलान किया गया।

12 कहानियों का संग्रह है

बता दें कि 2025 के निर्णायक मंडल की अध्यक्षता करने वाले लेखक मैक्स पोर्टर ने हार्ट लैंप को विजेता के रूप में घोषित किया। पोर्टर ने कहा, कई साल बाद 'हार्ट लैंप' अंग्रेजी पाठकों के लिए कुछ नया है ।यह अनुवाद की हमारी समझ को चुनौती देता है और उसे अच्छा करना में बेहतर करता है। बानू मुश्ताक उनकी 12 शॉर्ट स्टोरीज यानी लघु कहानियों का एक संग्रह है। उन्हें इस किताब को लिखने में लगभग 30 साल लगे।

बानू मुश्ताक ने पुरस्कार जीतने के बाद वहां बैठे लोगों से कहा, वैश्विक दर्शकों के लिए कन्नड़ को और अधिक पेश करने की जरूरत है। दुनिया भर के पाठकों के लिए अधिक से अधिक कन्नड़ साहित्य लाने की आवश्यकता है।

क्या है हार्ट लैंप में
हार्ट लैंप में 12 कहानियां हैं। ये कहानियां 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं। ये पितृसत्तात्मक दक्षिण भारतीय समुदायों में रहने वाली आम महिलाओं की हिम्मत, प्रतिरोध, हास्य और बहनचारे की कहानियां हैं। ये कहानियां कन्नड़ संस्कृति की मौखिक परंपराओं से प्रेरित हैं।

हार्ट लैंप- कहानियां और उनका प्रभाव
जजों ने हार्ट लैंप को 'हास्यपूर्ण, जीवंत, बोलचाल की भाषा में, मार्मिक और तीखा बताया। इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 के जजों के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने इसे 'अंग्रेजी पाठकों के लिए कुछ नया' कहा। उन्होंने किताब के अनुवाद को 'एक कट्टरपंथी अनुवाद' बताया। उन्होंने कहा कि यह अनुवाद भाषा को बदलता है और अंग्रेजी में नए रूप बनाता है। यह अनुवाद की समझ को चुनौती देता है और बढ़ाता है।

पोर्टर ने आगे कहा, 'यह वह किताब थी जिसे जजों ने पहली बार पढ़ने से ही पसंद किया था। जूरी के अलग-अलग नजरियों से इन कहानियों की सराहना सुनना बहुत खुशी की बात थी। उन्होंने महिलाओं के अनुभवों, प्रजनन अधिकारों, आस्था, जाति, शक्ति संरचनाओं और उत्पीड़न पर कहानियों के बारे में बताया।

क्या बोलीं बानू मुश्ताक
बानू मुश्ताक ने खुद कहा, 'यह किताब इस विश्वास से पैदा हुई है कि कोई भी कहानी छोटी नहीं होती, कि मानव अनुभव के ताने-बाने में हर धागे का अपना महत्व होता है।' उन्होंने साहित्य की लोगों को जोड़ने की शक्ति पर विचार किया। उन्होंने कहा कि एक ऐसी दुनिया में जो अक्सर हमें बांटने की कोशिश करती है, साहित्य उन पवित्र जगहों में से एक है जहां हम एक-दूसरे के दिमाग में जी सकते हैं, भले ही कुछ पन्नों के लिए ही सही।

2022 के बाद यह दूसरा भारतीय पुरस्कार है। उस साल गीतांजलि श्री और डेज़ी रॉकवेल को टॉम्ब ऑफ सैंड के लिए पुरस्कार मिला था। यह पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास था। पेरुमल मुरुगन का तमिल उपन्यास पायरे 2023 में लंबी सूची में था।

 

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