ठाणे भिवंडी महाराष्ट्र से पैदल चलकर 13 दिन में पहुंचे यूपी के सुलतानपुर।
भिवंडी से मुस्तक़ीम खान की रिपोर्ट।
पैरों में पड़ गये हैं बड़े बड़े छाले कोई आरोग्य की सेवा नहीं।तीन दिन बीत जाने के बाद भी जांच करने हेतु कोई नहीं आया।
भिवंडी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन-3 लगाये जाने से भयभीत भारी संख्या में भिवंडी एवं आसपास के क्षेत्रों के मजदूरों ने अपने मूल गांव जाना शुरू कर दिया है।
जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। जिन मजदूरों को जाने के लिये ट्रक, टेंपो, ऑटो, मोटर साइकिल जो भी साधन मिल रहा है वह उसी से जा रहे हैं।
सैकड़ों की संख्या में साइकिल से मजदूर अपने गांव जा चुके हैं। जिन मजदूरों को जाने के लिये कोई साधन नहीं मिल रहा है वे पैदल ही चले जा रहे हैं।
पावरलूम मालिकों के रोकने के बाद भी वह रास्ते में तकलीफ सहकर जाने के लिये तैयार हैं लेकिन लॉकडाउन के भय से रुकने के लिए तैयार नहीं हैं। पैदल जाने वाले मजदूरों में से तीन मजदूर भिवंडी के केडिया कंपाउंड से पैदल चलकर 13 दिनों में 1500 किमी से अधिक की दूरी तय करके उत्तरप्रदेश के जिला सुलतानपुर स्थित अमलिया सिकरा ग्रामसभा में पहुंचे हैं।
कई दिनों तक लगातार पैदल चलने के कारण उनके पैरों में छाले पड़ गये हैं और उनका पूरी शरीर दर्द कर रहा है।
ग्रामसभा के पंचायत भवन में तीनों लोगों को क्वारंटीन किया गया है लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद भी उनकी जांच पड़ताल करने के लिये कोई स्वास्थ्य कर्मचारी नहीं आया है जो चिंता का विषय बना हुआ है।
जनता कर्फ्यू के बाद 24 मार्च को लॉकडाउन-1 लगाया गया था। इसके बाद पावरलूम कारखानों एवं गोदामों आदि में काम करने वाले मजदूरों ने सोचा था कि किसी तरह से 21 दिन का समय बीत जायेगा।
लॉकडाउन-2 के बाद से ही चोरी-छिपे मजदूर भागना शुरू कर दिये थे लेकिन लॉकडाउन-3 के बाद मजदूरों को यह भय सताने लगा कि यह लॉकडाउन इसी प्रकार से बढ़ता रहेगा।
जिसके भय के कारण कर्फ्यू लगाये जाने के बावजूद मजदूरों ने तेजी से भागना शुरू कर दिया था।
नाकाबंदी करके पुलिस जगह-जगह रोकती रही और मजदूरों को रास्ते में परेशानियां उठानी पड़ी, लेकिन मजदूरों के जाने का सिलसिला कम होने के बजाय बढ़ता चला गया है।
मजदूरों के गांव जाने का सिलसिला भिवंडी ही नहीं आसपास के शहरों से भी होने लगा है।
पुलिस के भय से मजदूर दिन में जाने के बजाय रात में जाने लगे हैं।
पूर्व 24 अप्रैल की सुबह भिवंडी के शेलार स्थित केडिया कंपाउंड में रहने वाले 10 पावरलूम मजदूर उत्तरप्रदेश के सुलतानपुर एवं प्रतापगढ़ के रहने वाले पैदल ही निकल लिये थे। सभी मजदूर 9 दिनों तक लगातार पैदल चलते रहे। प्रतिदिन 60 से 70 किमी चलते रहे। लगातार चलने के कारण उनके पैरों में छाले पड़ गये हैं।
जिस कारण उनमें से कुछ मजदूर थकने के कारण रास्ते में ही छूट गये। सुलतानपुर जिला के अमलिया सिकरा गांव के रहने वाले शिवचरण गौतम, देवीलाल गौतम, हुबराज गौतम, एक मलवनिया गांव के एक मजदूर सहित चार मजदूर आगे बढ़ते गये।
अन्य 6 मजदूर दूसरा रास्ता पकड़ लिये, हालांकि वे मजदूर भी गांव पहुंच चुके हैं।
पावरलूम मजदूर शिवचरण
गौतम ने बताया महाराष्ट्र की सीमा पार करने के बाद उन्हें बीच-बीच में ट्रक मिल जाता था।
कुछ ट्रक वाले बिना किराया लिये लेकर जाते थे और कुछ ट्रक वाले किराया भी लेते थे। ट्रक वाले 50 किमी का डेढ़-दो सौ रुपया किराया ले लेते थे।
60-70 किमी पैदल चलने पर जहां थक जाते थे वहीं सो जाते थे और उठने के बाद फिर उनकी पदयात्रा शुरू हो जाती थी।
शिव चरण ने बताया कि महाराष्ट्र की सीमा में जगह-जगह उन्हें भोजन और पीने के लिये पानी एवं नाश्ता भी मिलता था।
लेकिन जब ट्रक मिल जाता था तो ट्रक वाले को 150-200 रुपया किराया भी देना पड़ता था और ख़ुद के लिये भोजन की व्यवस्था भी करनी पड़ती थी।
जहां जाने का साधन मिला वहां भोजन नहीं मिला।
चमन ढाबा मजदूरों को खिलाता है खाना इंदौर से 73 किमी पर रायबरेली के यादव का चमन ढाबा है, जहां पहुंचने पर इन्हें निःशुल्क खाना मिला। चमन ढाबा पर नहाने एवं खाने की व्यवस्था होने के कारण वहां एक दिन रुक गये थे।
वहां जांच करने के लिये डॉक्टर एवं क्षेत्राधिकारी आने वाले थे। इनके ही तरह वहां और भी मजदूर रुके थे।
मजदूरों को बताया गया था कि क्षेत्राधिकारी के आने के बाद बस की व्यवस्था की जायेगी, लेकिन क्षेत्राधिकारी के न आने के कारण मजदूर पैदल ही आगे चल दिये।
और 6 अप्रैल को सुबह चार बजे ट्रक से प्रयागराज पहुंच गये, प्रयागराज से फिर पैदल चलते हुये सोरांव पहुंच गये।
सोरांव गेस्ट हाउस में पैदल आने वाले मजदूरों के लिये भोजन बन रहा था, लेकिन भोजन मिलने में देर होने के कारण चारों मजदूर वहां चेकअप कराकर आगे बढ़ गये।
गेस्ट हाउस में उन्हें बताया गया कि डीएम साहेब आने वाले हैं और मजदूरों को देखकर अभी भड़क जायेंगे, जिसके कारण चारों मजदूर वहां से भी चल दिये।
लगभग 30-40 किमी चलने के बाद कोई ट्रक वाला मिला जो 200 रूपये प्रति मजदूर किराया लेकर उन्हें सुलतानपुर के पयागीपुर चौराहा पर छोड़ दिया।
पयागीपुर चौराहा सील होने के कारण चारों मजदूर रेलवे लाइन पकड़कर अंदर गये, जहां पुलिस अधिकारियों को सूचित करके जांच के
लिये जिला अस्पताल गये।
लेकिन शाम को 7 बजने के कारण जांच करने वाले डॉक्टर चले गये थे। जिसके कारण 6 किमी पैदल चलकर डॉक्टर के पास गये और अपना जांच कराया।
सुलतानपुर के गोलाघाट से एंबुलेंस वाले को 800 रुपया देकर अपने गांव पहुंच गये।
ग्राम पंचायत में नहीं है कोई व्यवस्था।
गांव पहुंचने के पहले ही उन लोगों ने ग्राम प्रधान राकेश वर्मा को सूचित कर दिया था, जिसके कारण उनके लिये पंचायत भवन खाली रखा गया था।
तीनों मजदूरों को पंचायत भवन में 14 दिन के क्वारंटीन के लिये रखा गया है लेकिन वहां कोई चिकित्सा व्यवस्था नहीं है।
पंचायत भवन में न तो बिजली है और न ही पंखा, तीनों मजदूरों के घर से दोनों समय भोजन एवं नाश्ता आता है।
मजदूरों को सोने के लिए उनके घर से चारपाई एवं बिस्तर दिया गया है लेकिन सरकारी स्तर पर खाने-पीने के लिये कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
मजदूरों को पहुंचे तीन दिन हो गये हैं लेकिन उनकी जांच के लिये अभी तक कोई स्वास्थ्य कर्मी अथवा सरकारी कर्मचारी नहीं आया है।
आंगनवाड़ी की सहायक सेविका ने इनके आने की सूचना ब्लाक एवं जिला स्तर पर दे दिया है। परंतु यह लोग अभी तक चिकित्सा सुविधा आदि की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
ऐसे में सरकार की नाकामी बताया जाए या जिला प्रशासन की। क्या ऐसे ही यूपी की योगी सरकार की व्यवस्था है।