कोरोना योद्धा सम्मान पत्र बाँटे पर उठ रहे कई सवाल।

कोरोना योद्धा सम्मान पत्र बाँटे पर उठ रहे कई सवाल।

सीहोर से शेख फैज़ान की रिपोर्ट।

सीहोर वर्तमान में कोरोनो योद्धा का सम्मान पत्र रेवड़ी की तरह बांटा जा रहा है। सम्मान बाँटने और पाने वालों की हैसियत, योगदान सहित उनके अस्तित्व पर सवालिया निशान उठ रहे हैं।

गौरतलब है कि जिले सहित पूरे देश में कोरोना योद्धाओं का सम्मान पत्र बाँटने एवं हासिल करने की होड़ लगी हुई है।

खास बात यह है कि यह सम्मान पत्र कम्प्यूटर एवं मोबाइल से तैयार कर शोशल मीडिया के माध्यम से वायरल कर दिए जा रहे हैं। ऐसा भी देखा जा रहा है कि अधिकारियों की नज़र में स्वयं को समाज सेवी संस्था का प्रमुख साबित करने के लिए भी कार्यालय में जाकर उनको सम्मान पत्र सौंपा जा रहा है। लाकडाउन का दूसरा चरण खत्म होने के बाद यह अभियान कुछ ज़्यादा ही तेज़ हो गया है।

शोशल मीडिया पर इस तरह के हज़ारों सम्मान पत्र हर रोज़ अपलोड किए जा रहे हैं। यह सम्मान पत्र बाँटने एवं पाने वाले अब समाज में चर्चा का विषय औऱ हँसी के पात्र बन रहे हैं।

वजह भी साफ है योद्धा उसे कहा जाता है जो अपनी जान को खतरे में डाल कर सेवा, संघर्ष करता है। इस लिहाज से कोरोनो योद्धा का सम्मान पाने के वो ही वास्तविक हकदार हैं।

जिन्होंने लाकडाउन के दौरान अपनी जान को खतरे में डाल कर देश और समाज की सेवा ईमानदारी से की है।

इनका चयन करना भी आसान काम नहीं है। साथ ही चयन करने वाली संस्था के अस्तित्व हैसियत, कानूनी मान्यता के साथ साथ उसके परिवार को लेकर भी स्पष्टता होनी चाहिये।

किस पैमाने से उसने कोरोना योद्धा का चयन किया और किस अधिकार से प्रमाण पत्र दिया यह भी स्पष्ठ होना चाहिए।

सभी पहलुओं को नज़र अंदाज़ कर प्रमाण पत्र रेवड़ी की तरह बाँटे जा रहे हैं।

प्रमाणपत्र बाँटने वाले भी खुश हैं कि उनका समाज सेवा का धंधा चल निकला है और प्रमाणपत्र हासिल करने वाले भी कालर ऊँची कर स्वयं को योद्धा समझ रहे है होंगे।

भले ही उन्होंने फली भी ना फोड़ी हो, बरहाल इससे वो योद्धा ज़रूर उत्साहित हो रहे होंगे जो वास्तव में योद्धा हैं।

सच्चाई यह भी है कि योद्धा न तो कभी सम्मान पाने के बाद उसका प्रचार करता है और न ही उसका प्रोपेगेंडा। योद्धा का कर्म ही उसकी पहचान होती है। पहचान काम से खुद निखरती है। शोशल मीडिया पर संस्थाओं द्वारा बाँटने जा रहे हैं। प्रमाण पत्रो को योद्धा की आवश्यकता नहीं है। समाज इस तरह की संस्थाओं, उनके योद्धाओं को ना तो स्वीकार करता है ओर न ही महत्व देता है।

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