कलम पुस्तक के सिपाही बन बैठे हैं किराए के कर्ज के सिपाही।
कोरिया छत्तीसगढ़ से अतुल शुक्ला की रिपोर्ट।
अकसर लोगों को शिक्षा या रोजगार के मकसद अधिकांश शहरों में जाकर सर्वप्रथम शिक्षा प्राप्त करें रोजगार की तलाश करते हैं जिस बीच कुछ ऐसे भी किराएदार होते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है कुछ तो रोजगार करके अपनी शिक्षा प्राप्त करते हैं और कुछ तो किसी तरह मकान किराए में लेकर शिक्षा प्राप्त करते हैं।
जिस प्रकार देश में महामारी के रूप में एक वायरस जिसे हम कोविड-19 के नाम से भी जानते हैं या मनुष्य के लिए तो अदृश्य है पर इसका प्रहार जानलेवा है, जिसके रूम पर रोकथाम के लिए भारत सरकार तथा राज्य सरकार और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा एवं समस्त राज्य के मुख्यमंत्री के आदेश अनुसार अकस्मात रूप से विश्वविद्यालयों, विद्यालय एवं महाविद्यालयों प्रशासनिक एवं गैर प्रशासनिक, सरकारी दफ्तर कारखाने बंद कराए गए थे।
जिस से समस्त किरायेदारों के मकानों में रह रहे, छात्र-छात्राओं जो कि तत्काल अपने घर की ओर निकल पड़े थे। उन छात्र-छात्राओं की वापसी व मजदूरों की वापसी यातायात के सभी संसाधनों के बंद होने के कारण वापस जाकर अपने किराए पर लिए हुए मकान को खाली नहीं किया जा सका है।
जिसके बाद आज के कंधों पर जहां किताबों का बोझ अच्छा लगता है वहीं आज वह कर्ज के बोझ में दबे हुए हैं। छात्र ना अपनी बात किसी के सामने रख पा रहा है ना ही किसी प्रकार से शिक्षा ग्रहण कर पा रहा है। राज्य शासन और केंद्र सरकार के द्वारा छात्र छात्राओं पर के लिए एक विशेष गाइडलाइन तैयार करनी चाहिए।
राज्य सरकार और केंद्र सरकार को ध्यान देना चाहिए जहां अनगिनत छात्र छात्राओं के माता पिता आज बेरोजगार हो गए हैं। उनके लिए यह समय बहुत ही संकट काल में किरायेदारों का किराया किस प्रकार दें। सरकार को जल्द से जल्द इस विषय पर छात्रों को जवाब देकर छात्र हित में फैसला करना चाहिए।