करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी किसानों के खेतों तक नहीं पहुंचा एक बूंद पानी।

करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी किसानों के खेतों तक नहीं पहुंचा एक बूंद पानी।

बनते ही जर्जर हो गई नहर:

पानी निकासी में फंसा ढूंढ बना परेशानी का सबब।

शहडोल से मोहित तिवारी की रिपोर्ट।

सरकार द्वारा किसानों को यथेष्ट सुविधा दिलाने के मकसद से करोड़ों रुपए व्यय किए जाते हैं, बावजूद इसके जरूरतमंद किसानों को सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसे में शासन प्रशासन दोनों की बदनामी होती है। बावजूद इसके संबंधित अधिकारी अपनी जेब भरते हैं परंतु जरूरतमंद ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। कुछ इसी तरह का मामला शहडोल जिले के ग्राम केलमनिया का है, जहां करोड़ों रुपए की लागत का बना बांध तथा उसकी नहर पूरी तरह बर्बाद हो गई है।

Even after spending millions of rupees but not reached fields of farmer a drop of water.

शहडोल। आदिवासी अंचल में किसानों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के नाम पर शासकीय राशि का किस प्रकार दुरुपयोग किया जा रहा है, इसका जीता जागता उदाहरण संभागीय मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर मुड़ना नदी के उद्गम स्थल पर बने केलमनिया जलाशय में देखने को मिल रहा है। इस जलाशय का एक बूंद पानी भी किसानों को खेतों तक नहीं पहुंच रहा है। विभागीय जानकारी के मुताबिक जलाशय की सिंचाई क्षमता 470 हेक्टेयर बताई जा रही है। जबकि बारिश के मौसम में भी जलाशय में पानी बहुत कम है। जलाशय के पानी निकासी के लिए बनाई गई नहर भी अपनी दुर्दशा की कहानी स्वमेव कह रही है।

मजाक बनकर रह गई सुखी नहर:

केलमनिया बांध से ग्राम पंचायत पठरा तक लंबी नहर बना दी गई है, मगर उसमें जलाशय का एक बूंद पानी की नहीं बह रहा है। साथ ही किसानों के खेतों तक पानी पहुंच ही नहीं रहा है। नहर जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो गई है। कई जगह तो मिट्टी ने ही धसक कर नहर के वजूद को समाप्त कर दिया है। आश्चर्य की बात है कि बारिश के मौसम में भी जलाशय में पानी बहुत कम नजर आ रहा है। जलाशय को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी संरचना जलभराव के लिए नहीं हुई है। दो साल पूर्व बने बांध की पीचिंग के पत्थर भी अभी से उखड़ने लगे हैं और पूरा जलाशय चारों तरफ से असुरक्षित दिखाई दे रहा है। जिससे भविष्य में किसी भी बड़ी दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता।

औचित्यहीन है जलाशय का निर्माण:

क्षेत्र के किसानों की माने तो उन्हें आज तक केलमनिया जलाशय का एक बूंद भी पानी नहर के माध्यम से नहीं मिला है और भविष्य में उन्हें पानी मिलने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं दिख रही है। हालात यह हैं कि यदि नहर को दुरुस्त नहीं किया गया तो किसानों के खेतों तक कभी भी पानी नहीं पहुंचेगा और करोड़ों रुपए से बने केलमनिया जलाशय का निर्माण औचित्यहीन हो जाएगा।

किसानों ने लिया नहर का जायजा:

29 जुलाई को ग्राम पंचायत केलमनिया के ग्राम भर्रा टोला के कई किसानों ने मिलकर केलमनिया जलाशय और उसकी नहर का जायजा लिया। निरीक्षण में उन्हें पता चला कि नहर में पानी तो दूर, कई स्थानों पर मिट्टी से पटकर नहर ही गायब हो गई है। ऐसी दशा में भर्राटोला के अकलू बैगा के घर में किसानों ने बैठक आहूत की और क्षतिग्रस्त नहर का पंचनामा तैयार कर जलाशय और नहर के घटिया निर्माण के लिए शासन एवं प्रशासन का ध्यानाकर्षण कराने का निर्णय लिया।

नहर निकासी में फंसा लकड़ी का ठूंठ:

ग्रामीणों की मानें तो केलमनिया जलाशय के जिस स्थान से नहर में पानी की निकासी बनाई गई है, वहां जाकर लकड़ी का एक बड़ा ठूंठ फंस गया है। जिससे नहर से पानी आ ही नहीं रहा है। जलाशय में ठूंठ कुछ इस प्रकार फंसा है कि उसे निकालना काफी नामुमकिन दिख रहा है। कठिनाई इतनी ज्यादा है ठूंठ को निकालने के लिए जलाशय को ही खोदना पड़ सकता है। यही वजह है कि ठूंठ को निकालने का कोई प्रयास ही नहीं किया जा रहा है। यदि भविष्य में ठूंठ नहीं निकाला गया, तो नहर में कभी भी पानी नहीं आएगा और किसानों के खेत सूखे ही रह जाएंगे।

किसानों का दर्द, कौन सुनेगा:

केलमनिया बांध में एक साल पहले बनी नहर से आज तक हमारे खेत में एक बूंद पानी नहीं आया है: अकलू बैगा, कृषक।

बांध में नहर से पानी निकासी वाले स्थान पर लकड़ी का ठूंठ फंसा है। उसे निकालने आज तक कोई नहीं आया: फतुआ बैगा, कृषक।

केलमनिया से पठरा तक बनी नहर में पानी आने के पहले ही वह जगह-जगह से धसक गई है। उससे अब पानी नहीं आ सकता:
मोहन बैगा, कृषक।

जब हमारे खेतों में पानी नहीं पहुंचेगा तो बांध और नहर बनाने का क्या फायदा? इसे शीघ्र दुरुस्त कराया जाए।

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