मानवता के लिए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने दिया बलिदान।
छपरा से शकील हैदर की रिपोर्ट।
हज़रत इमाम हुसैन सियासत और अखलाक के अम्बरदार थे। ये दोनों मामले उस वक्त के दौर में पूरे समाज में फैले हुए बुराईयों के खिलाफ थे। इमाम हुसैन एक ऐसे अजीम इंसानी मामले के अम्बरदार थे जिन्होने अखलाक का अजीम उदारहण पेश किया है। आज भी हक की तलाश करने वाले लोग इमाम हुसैन के नक्श-ए-कदम पर चलने की कोशिशें करते हैं। आज कोरोना के दौर में हक की अदाइगी में लोगों को परेशानी का सामना करना पडा है। हकुमत की जानिब से जारी गाइड लाइन के मुताबिक लोगों ने मुहर्रम के मौके पर अपनी अकीदत के मुताबिक मजहबी रेवायत को अंजाम दिया।
आज कोरोना के दौर में जब तमाम तरह के मजहबी कामों पर पाबन्दी लगा दी गई है। ऐसे में लोगों ने हुकूमत और जिला इंतेजामिया की हिदायत के मुताबिक अपने अपने घरों में नजर-ओ-नियाज का एहतेमाम किय। यौमे आशूरा के मौके पर शहर का दहियावां मोहल्ला पूरी तरह से सुनसान नजर आया जबकी पहले के सालों में आज के दिन घर घर से अलम और शबीहा-ए-ताबूत निकलता जो एक एक कर साहिल होता जाता और औक जुलुस की शकल अख्तियार कर लेता था लेकिन इस बार चार से पांच लोगों ने ताजिया के फूल और दीगर सामने को कर्बला ले गए और पूरी ख़ामोशी के साथ दफ़न कर दिया।
इस साल इमामबाड़ों पर मातम का भी एहतेमाम नहीं किया जा सक। दूसरी तरफ जिला इन्तेजामिआ की तरफ से जिले के शहर से ले कर देहातों तक में बड़ी तादाद में पुलिस को तैनात कर दिया गया ताकि ताजिया और अखाड़े नहीं निकल सके। मालूम हो कि मोहर्रम अरबी कैलेंडर के अनुसार प्रथम माह का नाम है। कर्बला की घटना आज से 1400 वर्ष पूर्व इराक़ में घटी थी। जो कर्बला के नाम से जाना जाता है। उसी कर्बला की घटना को मुसलमान भाई हर वर्ष हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मोहर्रम मनाते हैं।
इस वर्ष कोरोना जैसी महामारी बीमारी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कर किसी भी चौक चौराहा पर न ही ताजिया रखी गई न ही किसी तरह अखाड़ा और जुलुस अलम रोड पर नहीं निकाला गया।
उधर शिया समाज के लोगों ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए इमामबाड़ों की जगह अपने अपने परिवारों के बीच मजलिस कर कर्बला के 72 शहीदों को याद किया और मोहर्रम के10 दिनों तक इस महामारी बीमारी को समाप्त करने की मजलिसों में दुआ की।
या अल्लाह हम सभी धर्म के मानने वालों की तू रक्षा कर और आई हुई कोरोना संकट से हमें निजात दिला। हम सभी धर्मो से जो गलती हुई हो उसको माफ कर, हम सभी की रक्षा कर। याद रहे कि सन 61 हिजरी में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 साथियों को एक अत्याचारी, आतंकवादी और निरंकुश शासक यजीद के आदेश पर बर्बरतापूर्वक मार दिया गया था।
यजीद ने धर्म की जगह अधर्म, शरीयत की जगह बिदत, न्याय की जगह, अन्याय, नैतिकता की जगह अनैतिकता और मानवता की जगह बर्बरता को स्थापित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहा कि जो हम कहें वो करना होगा। इमाम हुसैन ने इसका विरोध किया।