शोध: दुनिया में घट रहा भूजल स्तर, मेड़बंदी विधि ने बदले हालात सूखे खेतों में लहलहाईं फसलें, कुएं भरे

यूपी के बांदा जिले के जखनी गांव में खेत में मेड़बंदी (बाएं), जलदूत उमाशंकर पांडेय (दाएं ऊपर) और पानी से लबालब खेत (दाएं नीचे)।

दुनिया भर में पीने के पानी की कमी एक गंभीर मुसीबत बनकर उभर रही है। वैश्विक शोधों और संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक अनुमान है कि 2030 तक दुनिया भर में पीने योग्य पानी की मांग आपूर्ति से 40 फीसदी अधिक होगी। यह हाल तब है जब अभी दुनिया भर के करीब सभी देश पानी की कमी से जूझ रहे हैं। पूरी धरती का 70 फीसदी हिस्सा पानी से भरा होने के बावजूद पीने का पानी केवल तीन फीसदी है। वह भी सबको उपलब्ध नहीं है। ऐसे में अगर अब भी वर्षा जल को नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ियों को पानी के गंभीर संकट से जूझना पड़ेगा।

पानी मनुष्य और पशुओं के लिए मूलभूत आवश्यकता है। बिना पानी खेती नहीं होती है। इससे खाने की समस्या गहराती है। दुनिया भर में पीने के पानी को लेकर तमाम तरह के वैज्ञानिक और सामाजिक शोध किए जा रहे हैं, जबकि हमारे देश में हमारे पुरखों ने पहले से ही इसका उपाय खोज रखा है। उनकी अपनाई विधि से आसानी से इस संकट को दूर किया जा सकता है। हमारे पुरखे सदियों से मेड़बंदी विधि- खेतों में मेड़ बनाकर पेड़ों को रोपना- यानी खेत में मेड़ और मेड़ पर खेत से वर्षा जल को बचाने की तकनीकी अपनाकर पानी की बचत करते रहे हैं। यही वर्षा का जल भूजल स्तर को बढ़ाता है। यूपी के बांदा जिले के जखनी गांव के लोगों ने इस विधि को अपनाकर पिछले कई सालों से सूखाग्रस्त क्षेत्र को जलमग्न क्षेत्र में बदल दिया।

इससे न केवल वहां पानी की समस्या खत्म हुई, बल्कि कृषि उत्पादन बढ़ने और सब्जियों की पैदावार अच्छी होने से क्षेत्र में रोजगार भी बढ़ा है। रोजगार बढ़ने से गरीबी दूर हुई। गांवों में संपन्नता आने से क्षेत्र में स्कूलों-कालेजों की स्थापना हुई, जिससे शिक्षा का स्तर बढ़ा और बेरोजगारी की वजह से अपराधों में लिप्त युवा पढ़-लिखकर अब अपनी किस्मत चमकाने में जुटा है।

जखनी गांव के जलदूत, सर्वोदय कार्यकर्ता और जलग्राम स्वराज अभियान समिति के अध्यक्ष तथा ‘खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़’ तकनीकी के प्रणेता उमाशंकर पांडेय के मुताबिक मेड़बंदी कोई नया विचार नहीं है। पानी संरक्षण और प्रबंधन करने की भारतीय पद्धति का यह हमेशा से हिस्सा रहा है, लेकिन इस ओर लोगों में जागरूकता की कमी की वजह से बारिश के पानी का समुचित उपयोग करने में नाकामी मिलती रही है। उनकी कोशिशों से जखनी गांव में पानी की समस्या खत्म हो गई है।

उमाशंकर पांडेय और उनके सहयोगियों ने सामुदायिक सहभागिता से बिना किसी सरकारी अनुदान के श्रमदान कर गांव के छह तालाबों, 20 कुओं और दो नालों को परंपरागत स्रोतों से पानी से लबालब कर दिया। उनके इस अनोखे प्रयास को देखते हुए चित्रकूट मंडल के तत्कालीन कमिश्नर एल. वेंकटेश्वर लू ने जखनी गांव को शासन से जलग्राम घोषित करवा दिया। जखनी का यह मॉडल अब आसपास के सभी गांवों में अपनाया जा रहा है। जिसका नतीजा यह है कि कभी गंभीर सूखाग्रस्त क्षेत्र रहा बांदा जिला अब विपुल संपदा और संपन्नता के साथ पानीदार क्षेत्र बन गया है।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की 85 फीसद से ज्यादा घरेलू जरूरतों के लिए भूमिगत जल ही एकमात्र स्रोत है। शहरी इलाकों में 50 फीसद पानी की जरूरत भूमिगत जल से पूरी होती है। देश में होने वाली कुल कृषि में 50 फीसद सिंचाई का माध्यम भी भूमिगत जल ही है, लेकिन जमीन के अंदर का यह जल तेजी से घटता जा रहा है।’

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