पढ़ई तुहंर दुआर में हर पारा टोला, मोहल्ला मे क्लास हो रही संचालित।
मन लगाकर बच्चो को पढ़ा रहे शिक्षक।
सरगुजा से जोनल हेड वीरेन्द्र पटेल की रिपोर्ट।
बलरामपुर। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से समूचा विश्व लड़ रहा है। इस महामारी ने मानव समाज में कई बदलाव लाये हैं। सुविधाओं के उपयोग से लेकर सामान्य दिनचर्या प्रभावित हुई हैं। इन चुनौतियों का सामना करते हुए लोग आगे बढ़ रहे हैं। कोरोना को नियंत्रित करने के लिए अतिआवश्यक सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी गतिविधियों पर रोक लगायी गयी थी। सुरक्षा के दृष्टिकोण से शिक्षण संस्थाएं को पूर्ण रूप से बंद रखा गया है। समय के साथ स्थिति को सामान्य बनाने के लिए राज्य शासन द्वारा सभी जरूरी कदम भी उठाए गए। शिक्षा समाज की प्रारंभिक एवं प्राथमिक जरूरतों में से है, राज्य शासन ने शैक्षणिक संस्थाओं के बंद होने से शिक्षा अवरूद्ध न हो इसके लिए ‘‘पढ़ई तुहंर दुआर’’ जैसी ऑनलाईन तथा मोहल्ला क्लास जैसी ऑफलाईन वैकल्पिक व्यवस्था प्रारंभ की।
बलरामपुर रामानुजगंज में भी ऑनलाईन तथा ऑफलाईन माध्यमों से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। शिक्षकों ने नए नए तरीके इजाद कर पढ़ाई को रूचिकर बनाया है, ऐसे कई शिक्षक हैं जिन्होंने इस कठिन समय में भी शिक्षा का अलख जगाए रखा। आज बात ऐसे ही कुछ शिक्षकों की है जिन्होंने सीमित संसाधनों में बच्चों को पढ़ाते हुए चुनौतियों को बौना साबित कर दिया है। नगरों से लेकर सुदूर ग्रामीण पारा टोलों तक मोहल्ला क्लास संचालित कर ये अपने पेशे के साथ पूरा न्याय कर रहे हैं।
प्राथमिक शाला धनवार में पदस्थ सहायक शिक्षक रश्मि पाण्डेय के प्रयास ने बच्चों की पढ़ाई को रूचिकर बना दिया है, रश्मि स्थानीय भाषा और प्रतीकों का प्रयोग कर बच्चों को आसानी से पशु-पक्षियों तथा वस्तुओं के नाम से परिचय करवाती हैं। बच्चों को भी सरलता के साथ इन प्रतीकों के माध्यम से मात्रा तथा वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। स्थानीय भाषा और प्रतीकों के संयुक्त प्रयोग से पढ़ाई को मनोरंजक रूप देने वाली रश्मि पाण्डेय ने बताया कि लाॅकडाउन के शुरूआती दिनों में सभी गतिविधियां बंद रही।
शासन से निर्देश प्राप्त होने के पश्चात ऑनलाईन कक्षाएं तथा मोहल्ला क्लास जैसी वैकल्पिक व्यवस्थाएं प्रारंभ की गई। बच्चों को केवल पुस्तकों के माध्यम से पढ़ाने तथा समझाने में कठिनाई होती थी ऐसे में आसपास के प्रतीकों, चिन्हों तथा स्थानीय भाषा के प्रयोग से बच्चों को वस्तुओं, मात्राओं तथा शब्द ज्ञान से परिचय करवाना ज्यादा सहज है। जैसे चूहे को स्थानीय पण्डों भाषा में खुसरा, बिल्ली को बिलाई, कुत्ता को कुकरा कहा जाता है इसके अंग्रेजी तथा हिन्दी शब्दों की जानकारी बच्चों को दी जाती है। साथ ही कुत्ते की पूंछ को उ की मात्रा एवं चूहे की पूंछ को ऊ की मात्रा के सदृश बताते हुए इसके प्रयोग की जानकारी दी। रश्मि पाण्डेय आसपास के परिवेश से पढ़ाने में ऐसे प्रतीकों एवं चिन्हों का चयन करती हैं ताकि बच्चों का भावनात्मक जुड़ाव होने से वे आसानी से इसे समझ पाये। सिखाने का तरीका कुछ ऐसा है जिसमें वे बच्चों को बताती हैं कि छोटी बच्चियां जो एक चोटी बनाते हैं उसे ए की मात्रा तथा दो चोटी को ऐ की मात्रा के समान है। साथ ही छोटे-छोटे चित्रों के माध्यम से भी बच्चों को पढ़ाने का यह प्रयास बड़ा ही रोचक है। रश्मि पाण्डेय ने बताया कि लाॅकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद थे तभी उनके मन में ये यह विचार आया कि बच्चों को आसानी से कैसे पढ़ाया जाए जिससे उनकी रूचि भी बनी रहे और उनका बौद्धिक विकास भी हो। बच्चे अपने आसपास के परिवेश से ही सबसे ज्यादा सीखते और समझते हैं। इसीलिए उन्होंने इन तरीकों को अपनाकर बच्चों को पढ़ाना प्रारंभ किया है। ऐसे तरीकों से बच्चे भी मनोरंजक ढंग से बुनियादी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही प्रयास पूर्व माध्यमिक शाला ढोढी में पदस्थ शिक्षक संजीव सिंह पटेल ने भी किया है जो बच्चों को रैपर यानि विभिन्न सामग्रियों के खाली पैकेट के माध्यम से बच्चों को अंग्रेजी तथा गणित की शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं। संजीव खाली पैकेट इकट्ठा करते हैं तथा उसी से बच्चों को मोहल्ला क्लास में पढ़ाते हैं। संजीव बताते हैं कि खाली पैकेटों में अंग्रेजी तथा हिन्दी में नाम के साथ ही अन्य जानकारियां लिखी होती हैं, जिससे बच्चों को शब्दों का ज्ञान हो जाता है। पैकेटों पर अंकित मूल्यों तथा अन्य संख्याओं के माध्यम से विभिन्न गणितीय अवधारणाओं का ज्ञान कराते हैं। ठीक इसी प्रकार अंजू ध्रुव जो शासकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय बरतीकला में शिक्षक हैं जिन्होंने बच्चों को ऑनलाईन पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर सराहनीय पहल की है। हिन्दी की व्याख्याता अंजू बच्चों को गद्य, पद्य सहित हिन्दी की विभिन्न विधाओं से परिचय करा रहे हैं। बच्चे भी इनसे ऑनलाईन जुड़ कर पढ़ने में बड़ा ही सहज बोध करते हैं। राज्य शासन की पहल तथा शिक्षकों के प्रयास से पढ़ई तुहर दुआर अपने उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त कर रहा है। मोहल्ला क्लास जैसी व्यवस्था ने बच्चों को स्कूल जैसी शिक्षा तथा वातावरण देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।