नव संवत्सर का करें सदुपयोग आत्म कल्याण के लिए -राजेश्री महन्त।
शिवरीनारायण से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट।
शिवरीनारायण। जब तक जीवात्मा शरीर में है तभी तक आपकी कीमत है मृत शरीर को तो बंधु बांधव और स्वजन काष्ट की तरह छोड़कर चले आते हैं।
नवरात्रि का पर्व हमारे प्राचीन मनीषियों ने शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के लिए ही बनाया है इससे कोरोना जैसे महामारी का संक्रमण कम होगा। शरीर नाशवान है, संपत्ति और वैभव भी हमेशा रहने वाली नहीं है! मृत्यु हमेशा सिराहने पर खड़ी हुई है, इसलिए हमें निरंतर धर्म का संचय और धर्म का आचरण करनी चाहिए।
नव संवत्सर का सदुपयोग आत्म कल्याण के लिए करें इससे आपका लौकिक और पारलौकिक जीवन सुधर जाएगा। इस भौतिक जगत में शरीर धारण करने का इससे अच्छा लाभ कुछ और हो भी नहीं सकता। यह बातें श्री दूधाधारी मठ एवं श्री शिवरीनारायण मठ पीठाधीश्वर राजेश्री डॉक्टर महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग ने विक्रम नव संवत्सर 2078 के अवसर पर अभिव्यक्त की। उन्होंने कहा कि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा वासंती नवरात्र तदनुसार 13 अप्रैल से लेकर 21 अप्रैल 2021 तक नवरात्रि का पावन पर्व प्रारंभ हो गया है। सनातन धर्म में चार नवरात्रि हम लोग मनाते हैं। जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त नवरात्रि शामिल हैं। इसका सही सदुपयोग हम सब को अपने जीवन में आत्म कल्याण के लिए करना चाहिए। नौ दिनों तक सात्विक आहार, सात्विक विचार, सात्विक व्यवहार को अपने आचरण में समाहित करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए ताकि यह हमारे दिनचर्या का एक अंग बन सके। हमारे प्राचीन मनीषियों ने नवरात्रि के पर्व को अपने आत्म कल्याण एवं आत्मोन्नति के मार्ग को प्राप्त करने के लिए सृजित किया है। इसमें योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत, पूजा इन सभी का अत्यधिक महत्व है। हमें अपनी क्षमता के अनुसार इनका अनुसरण करना चाहिए। याद रहे यह सब आध्यात्मिक क्रिया हमारे दैनिक नित्य क्रिया का एक अंग है लेकिन नवरात्रि काल में इसका विशेष महत्व है। इससे हमारी आंतरिक शक्ति जागृत होती है जिसका उपयोग हम स्वयं आत्म कल्याण के साथ सामाजिक विकास के लिए कर सकते हैं। ध्यान रहे जब तक आपके शरीर में जीवात्मा है तभी तक आपके शरीर का महत्व है। मृत शरीर को तो बंधु बांधव और स्वजन भी ढेले या काष्ट दंड की तरह शमशान में छोड़ कर वापस चले आते हैं। धर्म शास्त्रों में लिखा है “मृतं शरीरमृतसृज्य काष्ठलोष्टसमं क्षितौ। विमुखा बांधवा यान्ति धर्मस्तमनुतिष्ठति।।” नवरात्रि के अवसर पर सात्विक आहार, व्यवहार का आध्यात्मिक उपदेश इसलिए भी लाभकारी है कि इससे शरीर की आंतरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। ग्रीष्म, वर्षा, शीत एवं शरद इन चार ऋतुओं के संक्रमण काल में एक ऋतु की समाप्ति और दूसरे ऋतु का शुभारंभ होता है। संक्रमण काल में वायुमंडल में वायरस अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं। इससे विभिन्न तरह के रोग उत्पन्न हो जाते हैं इनसे बचाव के लिए ही सनातन धर्मावलंबियों में समुचित आहार, व्यवहार, विचार को शुद्ध रखने की परंपरा है। जिसे वर्तमान में विज्ञान ने भी स्वीकार किया है। अभी कोरोना वायरस की महामारी से संपूर्ण विश्व जूझ रहा है।नवरात्रि के आध्यात्मिक नियमों का अपने जीवन में पालन करके हम इसके संक्रमण को कम करने में अपनी महती भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। राजेश्री महन्त जी महाराज ने कहा कि शरीर नाशवान है, धन संपत्ति भी सदा रहने वाली नहीं है, मृत्यु हमेशा सिराहने पर खड़ी है, इसलिए सदा धर्म का संचय और धर्माचरण हम सभी को अवश्य ही करनी चाहिए।
शिवरीनारायण से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट।