का बरसा सब कृषि सुखानें, समय चुकें पुनि का पछितानें- राजेश्री महन्त।
21 जून कहीं 1 मई न बन जाए।
शिवरीनारायण से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट।
अभी भी कुल वैक्सीन उत्पादन का 25% निजी अस्पतालों में उपलब्ध कराएं जाने तथा 150 रुपए सर्विस चार्ज निर्धारित करना किसी के समझ में नहीं आ रहा है।
हमें लगता है केंद्र सरकार कोरोना को ही नहीं समझ पाई।
उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप काफी कारगर साबित हुआ है जनहित के मामले पर उन्हें चौकन्ना रहना ही चाहिए।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आखिरकार भारतवर्ष के सभी लोगों को निःशुल्क टीकाकरण करने का फैसला लिया। हमने पहले ही कहा था कि राष्ट्रीय टीकाकरण की नीति बननी चाहिए तथा यह भी अवगत कराया था की यदि वे पहले ही सभी लोगों को निःशुल्क टीका लगाने का निर्णय ले लिए होते तो निश्चित रूप से उन्हें काफी यश और सम्मान की प्राप्ति होती। उनकी कीर्ति में वृद्धि होती किंतु अब बहुत देर हो चुकी है। यह बातें छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष राजेश्री डॉ महन्त रामसुन्दर दास महाराज पीठाधीश्वर श्री दूधाधारी मठ एवं श्री शिवरीनारायण मठ ने अभिव्यक्त की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को कब कब, किन किन राज्यों के सरकारों ने कौन कौन सी सलाह दी। उसे उन्होंने किस तरह से माना या नहीं माना इन बातों का अब कोई औचित्य नहीं है। कारण कि केंद्र सरकार की भूल की सजा हजारों परिवारों को मिल चुकी है। कोरोना महामारी के संक्रमण से हजारों लोग काल कलवित हुए हैं। सैकड़ों परिवार पूरी तरह से तहस-नहस हो चुके हैं। बच्चे अनाथ हैं, कई परिवारों में कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा है। ऐसी विषम एवं भयावह परिस्थिति में यदि हम अब पूरे राष्ट्र को मुफ्त वैक्सीनेशन करने का निर्णय ले भी लेते हैं तो उससे उन लोगों की जान वापस नहीं आयेगी जो असामयिक मृत्यु के शिकार हुए हैं। अभी भी केंद्र सरकार के द्वारा निजी अस्पतालों को कुल वैक्सीन उत्पादन का 25% उपलब्ध कराने तथा साथ ही उनसे150 रूपये सर्विस चार्ज लेने का निर्णय किसी को समझ में नहीं आ रहा है। आखिर हम अपने देशवासियों को पूर्णतः निःशुल्क दवाई उपलब्ध क्यों नहीं करा पा रहे हैं? इस पर हमें चिंतन करना ही होगा। प्रधानमंत्री ने 21 जून से सभी लोगों को मुफ्त वैक्सीन प्रदान करने की घोषणा कर दी है किंतु उन्हें ध्यान रखना होगा कि 21 जून कहीं 1 मई न बन जाए, उसकी पुनरावृत्ति न हो। उन्होंने 1 मई 2021 से 18 वर्ष से 44 वर्ष तक के लोगों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की जो घोषणा की थी वह साकार नहीं हुई। समय पर राज्यों को वैक्सीन प्राप्त नहीं हुए जिसके कारण मई महीने में वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी रही है। हमें लगता है कि विशेषज्ञों के द्वारा बताए हुए तीसरी लहर से निपटने के उपाय में भी अभी तक केंद्र सरकार के द्वारा कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। ध्यान रहे कोविड-19 ऑक्सीजन की उपलब्धता, बेड तथा अस्पतालों के बढ़ाए जाने की प्रक्रिया से भले ही रोग के उपचार हो जाए तो हो जाए किंतु निदान नहीं हो सकता। निदान तो वैक्सीन से ही संभव है इसलिए बच्चों का टीकाकरण समय के पूर्व प्रारंभ हो जाना था जो आज पर्यंत अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है। विश्व के अनेक देशों ने बच्चों का वैक्सीनेशन पूरा कर लिया है। हम अभी नीति निर्धारण में ही लगे हुए हैं यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने लिखा है “का बरषा सब कृषि सुखानें, समय चुकें पुनि का पछताने।” अर्थात फसल के सूख जाने के पश्चात बारिश का कोई महत्व नहीं है। समय चूक जाने के पश्चात् पछताना भी उचित नहीं है। हमें ऐसा लगता है कि केंद्र की सरकार कोरोना महामारी को समझ ही नहीं पाई है। केंद्र के कई मंत्रियों के द्वारा कोरोना का पोलियो से तुलना करना समझ के परे है, उन्हें समझना होगा कि पोलियो कोई संक्रामक बीमारी नहीं है जबकि कोरोना ना केवल संक्रामक है अपितु प्राणघातक भी है। देश का उच्चतम न्यायालय कोरोना वायरस से निपटने में सरकार के नियमों की सतत निगरानी करता रहा है। यह उनकी बहुत अच्छी पहल है। देश की किसी भी संवैधानिक संस्था को अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत होना ही चाहिए।
शिवरीनारायण से अशोक गुप्ता की रिपोर्ट।