भारतीय रेल में तवा रेलवे ब्रिज और बागरातवा सुरंग को 150 वर्ष पूरे।

भारतीय रेल में तवा रेलवे ब्रिज और बागरातवा सुरंग को 150 वर्ष पूरे।

पश्चिम मध्य रेल के धरोहर का स्वर्णिम इतिहास।

होशंगाबाद से प्रदीप गुप्ता की रिपोर्ट।

जबलपुर। स्वतंत्रता से पहले, भारत में ईस्ट इंडिया रेलवे (EIR) और ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (GIPR) द्वारा रेलगाड़ी चलाने और रेल लाइन बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

Golden History of Heritage of West Central Railway.

इन दोनों कंपनियों ने मिलकर 150 वर्ष पहले सन 1870 में मुंबई और कलकत्ता के बीच पहली बार रेल संपर्क के लिए जबलपुर को जोड़ा गया। गौरतलब है कि जबलपुर से इटारसी रेलखण्ड पर नर्मदा नदी की सबसे बड़ी सहायक तवा नदी पड़ती है। इस रेल लाइन पर सबसे पुराना तवा ब्रिज एवं बागरातवा सुरंग ईस्ट इंडियन रेलवे और ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के सिविल इंजीनियर रॉबर्ट मेटलैंड ब्रेरेटन द्वारा 19 महीने में 08 मार्च 1870 को पूरा किया गया था। इस ऐतिहासिक पुराने पुल को 150 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। इस चुनौतीपूर्ण कार्य में नर्मदा घाटी की मिट्टी एवं तवा नदी के रेतीले तल को पार करता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कार्य, सुरंग के बाई ओर लगभग 300 मीटर वक्र था। तवा ब्रिज और बागरातवा सुरंग आज भी सोनतलाई और बागरातवा स्टेशनों के बीच ट्रैक के आठ किलोमीटर के हिस्से पर है। यह पमरे के महत्वपूर्ण ब्रिजों में से एक अहम धरोहर के रूप में है। जिसे सन 1927 में रीगर्डर भी किया गया। यह पुल तवा नदी पर तवा बांध से 07 किमी की दूरी पर स्थित हैं। इस पुल में 132 फिट के 02 स्पैन और 202 फिट के 04 स्पैन के नीचे वेब गर्डर है। इसके साथ 05 नग पियर और 02 नग एबटमेंट जो तत्कालीन समय की एशलर महीन चिनाई से बनी है। पुल की ऊँचाई 22 मीटर है। अब इस खण्ड के दोहरीकरण का कार्य भारतीय रेल द्वारा फरवरी 2020 में कपंलीट किया गया। वर्तमान समय में पश्चिम मध्य रेलवे द्वारा तवा नदी पर एक अतिरिक्त नया तवा ब्रिज का निर्माण किया गया है। आज की तारीख में तवा नदी पर अप और डाउन रेल लाइन बनाकर रेलखण्ड की क्षमता में वृद्धि हुई है। पश्चिम मध्य रेल द्वारा इस पुराने पुल के रखरखाव में विशेष ध्यान दिया जाता है। प्राचीन निर्माण कार्य शैली आज की धरोहर है और हमको गौरवान्ति करती है।

Golden History of Heritage of West Central Railway.

होशंगाबाद से प्रदीप गुप्ता की रिपोर्ट।

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