क्या प्राचार्य को वित्तीय अधिकार प्राप्त नहीं: एक अर्थहीन सवाल।

क्या प्राचार्य को वित्तीय अधिकार प्राप्त नहीं: एक अर्थहीन सवाल।

शहडोल से मोहित तिवारी की रिपोर्ट।

मामला जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान डाईट का।

शहडोल। कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए
प्रधानमंत्री ने किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे कर्मचारियों का वेतन न काटने का निर्देश दिया था।

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यालय के साथ साथ ही दो अन्य विद्यालयों, प्रोढ शिक्षा केंद्र के कर्मचारियों को विगत तीन माह से वेतन न मिलने से उनको परिवार पालन का संकट सुरसा की तरह मुँह खोले खड़ा है।

इसी अर्थहीन सवाल के कारण जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान के कर्मचारियों का तीन माह से वेतन भुगतान नहीं हुआ है। सूत्रों की मानें तो जिसका कारण शायद तत्कालीन कलेक्टर ललित दाहिमा द्वारा वित्तीय नियमों की अवेहलना और पद में काफी कनिष्ठ व्यक्ति फतह सिंह सेहरा जोकि हमेशा से ही किसी भी तरह से प्राचार्य बनने के लिए उत्सुक एवं सत्ता की चाह के लिए संस्थान में राजनीती करते हैं। उनको प्राचार्य प्रभार सौंपने से निर्मित स्थिति और उस पर माननीय उच्च न्यायालय का स्थगन और वर्तमान के जिला कोषालय अधिकारी आरएम सिंह का वित्तीय नियमों की जानकारी जिला प्रशासन को सही ढंग से न देना होना लगता हैI

बताया जा रहा है की लगभग विगत दो वर्षों से डाइट प्राचार्य कार्यालय प्रमुख के प्रभार का वहन सक्षम अधिकारी राज्य शिक्षा केंद्र विभागाधयक्ष, स्कूल शिक्षा विभाग प्रशासकीय विभाग, भोपाल म.प्र शासन के आदेश दिशा निर्देशों के अनुरूप एवं तब के कलेक्टर नरेश पाल के आदेश उपरांत वहां पदस्थ सबसे वरिष्ठ एवं विज्ञप्त राजपत्रित अधिकारी वरिष्ठ व्याख्याता आरके मंगलानी द्वारा किया जा रहा थाI परन्तु इसी बीच चार माह पूर्व तत्कालीन कलेक्टर ललित दाहिमा द्वारा नियमों के विपरीत जिला शिक्षा अधिकारी को आहरण संवितरण अधिकारी घोषित कर दिया एवं उसी के कुछ दिनों बाद प्राचार्य का प्रभार डाइट में पदस्थ काफी कनिष्ठ व्याख्याता फतेह सिंह सेहरा को दे दिया जोकि पद में काफी जूनियर है एवं इन्हें ही आहरण संवितरण अधिकारी घोषित कर दिया। जबकि शासन द्वारा डाइट प्राचार्य के प्रभारी पद को आहरण संवितरण अधिकारी पूर्व में घोषित किया जा चुका है।

चूँकि डाइट शहडोल संस्थान काफी पुराना है एवं काफी वर्षों से सेवा में है एवं किसी को भी आहरण संवितरण अधिकारी घोषित करने की जरुरत नहीं थी जो की नियम विरुद्ध है और प्राचार्य का प्रभार ग्रहण करते ही आहरण संवितरण अधिकार स्वतः ही प्रत्यावर्तित हो जाते हैं जो की प्राचार्य का प्रभार ग्रहण करते ही आरके मंगलानी को प्राप्त थे। जिसकी कोई अवधि नहीं होती। जिस कारण से ही तब के कलेक्टर नरेश पाल के आदेश में किसी अवधि का उल्लेख भी नही था और तो और राज्य शिक्षा केंद्र आदेश निर्देशों के अनुसार प्राचार्य प्रभार का वहन डाइट के वरिष्ठ अधिकारी के द्वारा ही किया जाना चाहिए परन्तु वह जूनियर फतह सिंह सेहरा को दे दिया गया। इन नियम विरुद्ध फैसलों के कारण आरके मंगलानी माननीय उच्च न्यायालय की शरण में गए और माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्टे आर्डर पारित किया गया एवं तत्कालीन कलेक्टर ललित दाहिमा को नोटिस जारी करते हुए शपथ पत्र में जवाब देने को कहा गया और आरके मंगलानी पुन: अपने प्राचार्य के प्रभार में आ गए।

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