पावरलूम चलने चाहिए लेकिन मजदूर के हित को दरकिनार कर नहीं।
भिवंडी से मुस्तक़ीम खान की रिपोर्ट।
भिवंडी। पावरलूम कारखाने को चालू करने के लिए सशर्त मिली अनुमति। पावरलूम मालिक भले खुश हैं और नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं लेकिन इस कोरोना वायरस जैसी महामारी के दौरान मजदूर के हित को उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि भिवंडी के अधिकांश पावरलूम कारखाने नियम और कानून को ताक पर रखकर चलाए जा रहे हैं। प्राथमिक उपचार किट से लेकर शौचालय और स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं है। कारखाने के आसपास गंदगी का अंबार लगा रहता है। ऐसी स्थिति में मजदूर और उनका स्वस्थ रहने की बात करना बेमानी होगी। ऐसे कैसे कोरोना से मुकाबला करेंगे पावरलूम मालिक।
अधिकांश मजदूर होटल और बिस्सी में खाना खाते हैं। लाकडाऊन के कारण सब बंद है, इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे, क्या इस तरह के प्रोटीनयुक्त भोजन की व्यवस्था पावरलूम कारखाना मालिक करेंगे। लाकडाऊन के दौरान मजदूर लाचार, असहाय महसूस कर रहे थे। अधिकांश कारखाना मालिक ने मोबाइल उठाना और कारखाने में आना बंद कर दिया था। मजदूर कम्युनिटी किचन और समाजसेवी द्वारा दिए गए भोजन पर निर्भर हो गये थे। जबकि अधिकांश मजदूर की पगार सेठ के पास बाकी है। हिसाब बाकी है फिर भी सेठो ने मजदूर से दूरी बना ली थी और मजबूरन मजदूर ट्रक, टैम्पो और पैदल गांव चले गए।
कारखाना चालू करने से पहले मजदूरों में सेठो को विश्वास पैदा करना होगा उन्हें यकीन दिलाना होगा कि भविष्य में इस तरह के हालात बनने पर आपको रहने खाने की व्यवस्था के साथ साथ गांव भेजने की भी व्यवस्था भी हम करेंगे।
राज्य सरकार को पावरलूम कारखाने चालू करने की अनुमति देने के साथ-साथ पावरलूम मजदूर के हित का ख्याल रखते हुए एक दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए। हैरानी वाली बात यह है कि लाकडाऊन में मजदूरों की दुर्दशा देखने के बावजूद मजदूर संगठन खामोश हैं।
सबसे मार्मिक बात तो यह है कि कठीन परिस्थिति में गाँव जाने वाले कुछ मजदूर के पैर के छाले अभी ठीक नहीं हुए होंगे। कुछ की थकान अभी मिटी नहीं होगी और कुछ अभी रास्ते में ही होंगे। फिर भी उनसे काम पर वापस आने की उम्मीद की जा रही है और उनके हित को दरकिनार कर।