तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार में सामाजिक चुनौतियों पर मंथन शुरू।
महामारी के बाद उपजी सामाजिक चुनौतियों का सामना करने का सूत्र खोज रहा बीएचयू।
इतिहास विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की ओर से तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार शुरू।
वाराणसी से संतोष कुमार सिंह की रिपोर्ट।
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय द्वारा भारत में महामारी, समाज एवं पर्यावरण एक ऐतिहासिक अवलोकन” विषयक तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया।
वेबीनार के उद्घाटन सत्र की शुरूआत कुलगीत से हुआ तत्पश्चात इतिहास विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो.केशव मिश्र ने वेबीनार से जुड़े सभी विद्वतजनों का स्वागत किया।
वेबीनार का विषय प्रवर्तन किया। प्रो.केशव मिश्र ने वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान लॉकडाउन की अवधि का रचनात्मक उपयोग करने पर जोर दिया एवं चिंता व्यक्त की कि आज की सोशल डिस्टेंसिंग कहीं छूआछूत में न बदल जाए। समाज वैज्ञानिकों को आगे आकर समाज की चुनौतियों से निबटने का सूत्र खोजना ही होगा।
वेबीनार के उद्घाटन सत्र के मुख्यवक्ता यूरोपियन यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट, नीदरलैंड के अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो.मोहन कांत गौतम ने भारतीय इतिहास के संदर्भ में आपदा एवं महामारी के बारंबारता एवं विभीषिका को रेखांकित करने की कोशिश की। इस तथ्य की तरफ ध्यान आकृष्ट किया कि अकाल के दौरान सांख्यिकीय आंकड़े यह निर्देशित करते हैं कि इस दौरान प्रवासन की प्रक्रिया तेज हुई है।
मजदूरों के पलायन के बाद आर्थिक स्थिति का क्षीण होना स्वाभाविक है। इसका रचनात्मक प्रयोग यही है कि कामगारों की क्षमता और योग्यता के अनुरूप गांव के आसपास ही उद्योग धंधों की शुरूआत की जाए। सबसे बड़ी चुनौती मानवीय संबंधों के लिये खड़ी होगी। आर्थिक और सामाजिक ढ़ांचे को बनाए रखना भी बड़ी चुनौती है। समाज वैज्ञानिक ही इन चुनौतियों से निपटने का सूत्र खोज सकते हैं।
वेबीनार के मुख्य अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा महान कृषि वैज्ञानिक पंजाब सिंह ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कोविड-19 के दौरान सामाजिक, आर्थिक, कृषिकीय एवं औद्योगिक जीवन कैसा हो इस संदर्भ में एक दिशानिर्देश देने की कोशिश की। उन्होंने न केवल व्यक्तिगत इम्यूनिटी को बढ़ाने पर जोर दिया बल्कि सामाजिक संदर्भ में स्थानीय स्तर पर स्थानीय उत्पादों का उपभोग बढ़ाने की भी बात कही।
कृषि की दशा में सुधार करके मजदूरों और कामगारों के पलायन को रचनात्मकता से जोड़ सकते हैं। इन मजदूरों का कृषि के क्षेत्र में बेहतर इस्तेमाल हो तो कृषि पर आधारित रोजगार बढ़ सकता है।
विशिष्ट अतिथि जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हरिकेश सिंह ने यह तर्क दिया कि कोविड-19 के पूर्व मानव जीवन एक रेखीय गति से आगे बढ़ रहा था वहीं कोविड-19 के दौरान एवं इसके उपरांत जीवन असामान्य, अनिश्चिक्ता की तरफ उन्मुख होगा। उन्होंने इस विषाणु के मानवजनित होने तथा इसके उद्भव को सीधे चीन के वायरोलॉजी लैब से जोड़कर देखा। उन्होंने जीवन के सनातन मार्गों को मानव जीवन एवं सभ्यता के उत्तरजीविता का एकमात्र रास्ता बताया।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो.आरपी पाठक ने कोविड-19 के दौरान सुरक्षा, खोज, निदान और एकांत को अत्यंत शीघ्र अपनाने पर जोर दिया। साथ ही कार्यपालिका को और प्रभावी बनाने की दिशा में क्या किया जा सकता है, इस संदर्भ में भी अपने विचार रखे।
अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार का संयोजन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की डा.अनुराधा सिंह ने किया। प्रो.घनश्याम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। वेबीनार में मुख्य रूप से प्रो.प्रवेश भारद्वाज, डा.सत्यपाल यादव, डा.अशोक सोनकर, डा.मृदुला जायसवाल शामिल रहीं।