महामारी के समय नवसृजन का उपक्रम खड़ा करें- प्रो. पाठक। तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार का समापन।
भारतीय संस्कृति में ही महामारी के बचाव का उपाय निहित।
वाराणसी से संतोष कुमार सिंह की रिपोर्ट।
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में चल रहे तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार के अंतिम दिन के प्रथम सत्र में प्रोफेसर बिंदा परांजपे, प्रोफेसर मालविका रंजन, डा.अफजल अहमद का 4 हुआ। सत्र समाप्ति के पश्चात समापन समारोह प्रारम्भ हुआ। इसके मुख्य वक्ता प्रोफेसर आनन्द शंकर प्राचार्य ईश्वर शरण पीजी कालेज, प्रयागराज थे।
प्रोफेसर आनन्द शंकर ने दुनियां में फैली महामारियों के इतिहास पर चर्चा की और दुनियां की कई सभ्यताओं के बिखरने का कारण महामारी को बताया। उन्होंने मानव और प्रकृति दोनों को एक दूसरे का पूरक बताया। उन्होंने कहा कि यह आपदा मानव जीवन के बदलते रहन सहन के कारण उपस्थित हुई है। उन्होंने बताया कि इस वैश्विक महामारी के समय भारत सम्पूर्ण दुनियां के लिए नेतृत्व का वाहक बना हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारी तकनीकी बदल रही है हमें अपने वैचारिक मूल्य भी बदलने हैं। अब आवश्यकता है कि साम्यवाद और पूँजीवाद से परे हम विकास का माध्यम मार्ग अपनाना है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर राजेश सिंह कुलपति पूर्णिया विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालयों में लॉकडाउन के दौरान चल रहे शैक्षणिक नवाचारों की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने व्याख्यानों को संग्रहित कर के लेक्चर बैंक बनने की वकालत की। प्रोफेसर राजेश सिंह ने भारत में इंटरनेट का कम इस्तेमाल होने पर भी चिंता ज़ाहिर की और कहा कि हम भारतीयों को तकनीकी से और अधिक मित्रवत होना चाहिए।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव डा.बालमुकुंद पाण्डेय ने अपने व्याख्यान के दौरान कहा कि हमें भारतीय संस्कृति के पैमाने को आत्मसात करने की आवश्यकता है। हमें परिवार को केंद्र बनाकर समाज को नई दिशा देने की जरूरत है। हमें आज अपनी प्राचीन सामाजिक व्यवस्था प्राचीन संस्कारों को अपनाने का समय आ गया है।
समापन सत्र की अध्यक्षता पूर्व संकायाध्यक्ष प्रोफेसर राम प्रवेश पाठक ने की उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण मानव समाज में विनाश और निर्माण के संदर्भ एक साथ चलते हैं। अतः आवश्यकता है कि हम सभी इस महामारी के समय में चैतन्य रूप से खड़ा हो कर एक दूसरे का सहयोग करें और इस महामारी के समय नवसृजन का उपक्रम खड़ा करें।
सत्र पूर्णता के अंतिम क्रम में सहायक प्रोफेसर रोहित कुमार द्वारा वेबीनार की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी गई। उन्होंने बताया कि इस तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में कुल 25 तकनीकी सत्र चले और कुल 250 शोध पत्र पढ़े गये। उन्होंने शोध पत्रों का समीक्षा पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का संचालन डा.सीमा मिश्रा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से विभागाध्यक्ष केशव मिश्र, प्रोफ़ेसर घनश्याम, प्रोफ़ेसर मालविका पांडेय, प्रोफ़ेसर प्रवेश भारद्वाज, डा.मृदुला जायसवाल व अन्य सभी शिक्षक समलित रहे।
कार्यक्रम के अंत में वेबीनार की संयोजिका डा.अनुराधा सिंह द्वारा धन्यवाद ज्ञापन प्रेषित किया गया।