अंत्योदय योजना के हितग्राही 35 किलोमीटर दूर से चावल ढोने को मजबूर।

सूरजपुर

अंत्योदय योजना के हितग्राही 35 किलोमीटर दूर से चावल ढोने को मजबूर।

सूरजपुर जिले के दूर अंचल क्षेत्र चांदनी बिहारपुर के ग्राम पंचायत खोहिर के आश्रित ग्राम लुल्ह, बैजनपाठ, तेलाईपाठ, भुण्डा और रसोकी जूडवनीया के निवासी अपने जीवन यापन के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही अंत्योदय योजना के चावल लेने के लिए लगभग 35 किलोमीटर की पहाड़ी रास्ता तय करके आना पड़ता है।

ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम बैजनपाठ, तेलाईपाठ, भुण्डा, लुल्ह यहां के ग्रामवासियों को सड़क ना होने की वजह से हर महीने 35 किलोमीटर दूर चलकर ग्राम महुली में आकर चावल लेने को मजबूर हैं।

छत्तीसगढ़ शासन एवं जिला प्रशासन ने अभी तक इन ग्रामीणों की तरफ अपना कोई ध्यान नहीं दिया है।

गौरतलब की बात यह है कि इन सभी ग्रामों में विकास नहीं होने से विधानसभा चुनाव में ग्रामवासियों ने अपने मतदान का भी बहिष्कार किया था।

इस जगह पर मतदान नहीं हो पाया था इसके बावजूद भी अभी तक जिला प्रशासन के द्वारा कोई सार्थक पहल नहीं किया गया है। जिसके वजह से ग्रामीणों की समस्या जस की तस बनी हुई है।

जब ग्रामीण 35 किलोमीटर दूर चलकर चावल लेने आते हैं तो उन्हें विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। फिर इधर से चावल लेकर जाने में और अधिक समस्या होती है। जिसकी वजह से एक ही परिवार के दो तीन लोगों को चावल लेने आना पड़ता है।

ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ शासन और जिला प्रशासन से तत्काल सड़क बनवाने की मांग की है जिससे की ग्रामीणों की समस्या का समाधान हो सके।

नहीं है रोड व्यवस्था, गांव के लोग आज भी नहीं जानते कि एम्बुलेंस क्या है।

रोड के अभाव में वहां के लोगों का बेहतर इलाज नहीं हो पाता है। न तो सरकारी गाड़ी जा पाती है इसलिए लोग 108-102 आदि के बारे मे कुछ भी नहीं जानते हैं।

बिहारपुर समुदायिक केंद्र में एमबीबीएस डॉक्टर भी नहीं है।

उचित मूल्य से राशन क्रय करने हेतु 18-20 किलोमीटर पैदल जंगली रास्ता पार करके एक दिन पहले ही महुली नामक पंचायत में आते हैं।

कई बार लिखित मे शिकायत से लेकर मांग किये। ग्रामीणों के बताए अनुसार यह गांव पण्डो बाहुल्य है, जहां आज भी 18 वीं शदी में लोग जी रहे हैं, न लाईट बत्ती, न सड़क पानी न स्कुल भवन है। यह वही गांव है जहां के लोगों ने मुख्यमंत्री से लेकर प्रधान मंत्री को 2017-18 में गांव छोड़कर जाने के लिए पत्र लिखा था।

यह कह कर रोक लिया गया कि हम सड़क, बिजली, पानी सब कुछ देंगे।

पहले यहां के लोग लगभग 50 सालों से मध्यप्रदेश के सींगरौली जिले से कंधे पर पानी ढोकर पीते थे। लेकिन यूट्यूब पर वीडियो वायरल होने पर पिछले दो सालों से सोलर पम्प से पानी तो दे रहे हैं पर केवल दिन में ही पीने के लिए मिलता है। रात को नहीं मिलता है। बरसात में नालों से पानी लेकर पीते हैं।

लोगों के बताए अनुसार अब तो ढोकर पानी पीना, समस्या झेलना आदत सी हो गई है। ना कोई नेता मंत्री सुनता है।

पण्डो संरक्षित जनजाति हैं इनकी जनसंख्या दिनों दिन घटती जा रही है। फिर भी शासन प्रशासन मौन है। इसी घटती जनसंख्या को देखते हुऐ भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी ने सन 1952 में इस जनजाति को गोद लिया है और फिलहाल छत्तीसगढ राज्य शासन ने भी जनसंख्या और शिक्षा को देखते हुए विशेष पिछडी जनजाति का दर्जा दिया है।

अब देखना यह है कि इन तक शासन का लाभ कैसे पहुंचाया जा सकता है? क्या ऐसे हालात में इनको संरक्षित रख पाएगी सरकार? क्या ऐसे गंभीर मामलों मे वहां के जन प्रतिनिधि, क्या शासन सत्ता तक पहुंचाएगे? क्या इनको न्याय मिल पायेगा? क्या पचासों साल से झेल रहे इस गांव की समस्या दूर हो पायेगी? ये बड़ा सवाल भी है और शासन के लिए चुनौती भी।

ब्यूरो रिपोर्ट पप्पू जायसवाल।

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