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न्याय न मिलता देख रहवासी पहुँचे कमिश्नर के पास, लगाई मदद की गुहार।
शहडोल से संभागीय ब्यूरो मोहित तिवारी की रिपोर्ट।
अब फैसला संभाग के कमिशनर के हाथों में:
कोविड 19 से आज पूरा देश लड़ रहा है। बिना जरूरत लोग अपने घरों से नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में राजस्व ग्राम बलपुरवा के रहवासी पहुँचे अपनी समस्या लेकर कलेक्टर के पास और लगाई मदद की गुहार। आज के युग में एक मकान बनाना बहुत बड़ी बात है। इंसान एक मकान बनाने में अपना पूरा जीवन लगा देता है। उस मकान के बन जाने के बाद लगभग 60 साल बाद आज प्रशासन यदि वहाँ रहने वालों को ये बोल कर बेदखल कर दे कि आपकी भूमि शासकीय है वहाँ तालाब था।
एक आदमी के लिए इससे बड़ा सदमा क्या हो सकता है। गांव गांव में आज शासकीय भूमियों में अवैध तरीके से कब्जे किये जा रहे हैं, उसे खाली कराने में जिला प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है। प्रशासन की कार्यवाही सिर्फ जुर्माने तक ही सिमट कर रह गयी लेकिन 1954-55 में पट्टे की भूमि को उसके पहले के रिकार्ड में शासकीय बता कर खाली करने के आदेश प्रशासन ने दे दिया।
अभी तक प्रशासन कहाँ था? यदि यह भूमि तालाब की मेड़ है तो वहाँ बना यातायात थाना भवन तालाब में है तो मेड़ खाली कराना और तालाब में यातयात भवन बनाना समझ से परे है।
शहडोल। राजस्व ग्राम बलपुरवा के वार्डवासियों ने कमिश्नर शहडोल को ज्ञापन देते हुए कहा कि राजस्व ग्राम बलपुरवा जनरल नम्बर 662 पटवारी हल्का नम्बर 76 बलपुरवा तहसील सोहागपुर जिला शहडोल मध्यप्रदेश में स्थित आराजी खसरा नम्बर 47, 49, 49/88 जिसका नया खसरा नम्बर क्रमशः 138, 141, 139 बना वर्ष 1954-55 में बुद्धू वल्द समुहा ढीमर के नाम राजस्व अभिलेख में दर्ज था।
इस पर बुद्धू एवं उसके मरणोपरान्त उसके वारिसान खेती किसानी का कार्य करते थे। बुद्धू के वारिसानों ने समय समय पर इस आराजी को विभिन्न व्यक्तियों को विक्रय किया तथा राजस्व अधिकारियों द्वारा रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के आधार पर क्रेताओं के पक्ष में नामांतरण किया जाकर राजस्व अभिलेख में खसरा क्रेता के पक्ष में संशोधित किया गया।
अधिकतर क्रेताओं ने अपने स्वामित्व में पट्टे की आराजी पर मकान, दुकान इत्यादि बनाकर अपने परिवार के साथ निवास कर रहे हैं।
तत्कालीन कलेक्टर द्वारा बिना सुनवाई का अवसर दिए शासकीय रिकार्ड खसरा संशोधित करने का अंतरिम आदेश पारित कर वर्ष 1954-55 के पूर्व के रिकार्ड के आधार पर सभी पट्टेदारों का नाम काटकर मध्यप्रदेश शासन अंकित कर दिया गया तथा आधार यह बताया गया कि इस खसरा नम्बर का रकबा तालाब एवं तालाब की मेड़ के रूप में वर्ष 1954-55 के पूर्व दर्ज थी।
इस खसरा नम्बर के कई भूखण्डों को विक्रय करने की अनुमति कलेक्टर द्वारा दी गई है। इस आराजी का अंश रकबा लगभग दो एकड़ मध्यप्रदेश पुलिस विभाग को आवंटित कर दिया गया। जिस पर वर्तमान में पुलिस कन्ट्रोल रूम एवं यातायात थाना बना हुआ है।
नहीं दिया सुनवाई हेतु अवसर:
इस अंतरिम आदेश के परिपेक्ष में बिना सुनवाई का समुचित अवसर दिए पूर्व कलेक्टर शहडोल ने दिनांक 13 दिसम्बर 2019 को अंतिम आदेश पारित कर दिया तथा सभी पट्टेदारों के पट्टे की भूमि से संबंधित खसरे में मध्यप्रदेश शासन का नाम स्थाई तौर पर अंकित करा दिया।
कमिश्नर कोर्ट में की अपील:
जिसमें क्षुभित या परेशान होकर पट्टेदारों ने अपर आयुक्त शहडोल के न्यायालय में माह जनवरी 2020 में अपील प्रस्तुत की जिस पर अपर कमिश्नर शहडोल ने आज दिनांक तक कोई सुनवाई नहीं की तथा न ही स्थगन आवेदन पर सुनवाई की।
पट्टदारों के विरुद्ध बेदखली का प्रकरण:
वर्तमान समय में पूरा देश कोविड -19 जैसी वैश्विक महामारी से गुजर रहा है तथा भारत के प्रधानमंत्री के निर्देशानुसार बिना अति आवश्यक कार्य के घर से बाहर कोई भी नहीं निकल रहा है।
सभी न्यायालयीन प्रकियाएं भी बंद हैं, उसके उपरांत नजूल तहसीलदार सोहागपुर द्वारा पट्टेदारों के विरूद्ध बेदखली का प्रकरण प्रारम्भ किया जाकर नोटिस वितरित की गई तथा सुनवाई की तारीख 15 मई 2020 नियत की गई थी।
पुलिस कंट्रोल रूम:
भारत के संविधान के परिपेक्ष में निर्मित कानून में शासन एवं जनता के लिए कानून एक है, फिर इस स्थिति में यदि उक्त खसरा नम्बर की भूमि पर देश स्वतंत्र होने के पहले कभी तथाकथित तालाब रहा भी हो तो उस स्थिति में ऐसा नहीं हो सकता कि खाली भूमि पर शासन के व्यय पर पुलिस कंट्रोल रूम एवं यातायात थाना निर्मित कर दिया जाये तथा स्थानीय रहवासियों को बेदखल करने की कार्यवाही की जाये।
स्थगन आदेश हेतु पहुँचे स्थानीय निवासी:
दिनांक 14 मई 2020 को स्थानीय निवासी एकत्रित होकर अपर कमिश्नर शहडोल के समक्ष कलेक्टर कोर्ट के आदेश के विरूद्ध स्थगन आदेश हेतु गए। जहां पर अपर कमिश्नर शहडोल द्वारा लाकडाउन में प्रकरण में सुनवाई करने से मना कर दिया गया। जबकि तहसीलदार द्वारा लाकडाउन के निर्देशों के विपरीत प्रकरण में दिन प्रतिदिन सुनवाई की जा रही है।
प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के द्वारा एक तरफ तो विभिन्न प्रकार की जन उपयोगी सुविधाएं एवं योजनाएं चलाकर जनता को निस्वार्थ मकान बनाने में सहयोग किया जा रहा है, दूसरी ओर राज्य शासन के अधिकारी मध्यप्रदेश कानून माल लागू होने के पूर्व के कानून के आधार पर स्थानीय जनता के 61 वर्ष पुराने भू-स्वामित्व अधिकार से मनमानी पूर्वक बेदखल करने की कार्यवाही कर रहे हैं।
भू-स्वामित्व के अधिकार से बेदखल:
नजूल तहसीलदार सोहागपुर ने लाकडउन की स्थिति में चार व्यक्तियों को उनके भू-स्वामित्व के अधिकार से बेदखल कर दिया है। जबकि रहवासियों की अपीलें अतिरिक्त आयुक्त शहडोल के समक्ष लंबित हैं।
आवेदकगणों की ओर से कलेक्टर शहडोल के आदेश के विरूद्ध अतिरिक्त आयुक्त शहडोल के न्यायालय में अपील लंबित है तथा सुनवाई नहीं की जा रही है और यह कहा जा रहा है कि लाकडाउन के उपरान्त ही प्रकरण सुनवाई में लिया जा सकता है। दूसरी ओर आये दिन कोई न कोई राजस्व एवं पुलिस अमला आवेदकगणों को उनके पट्टे की भूमि से बेदखल करने की धमकी दे रहा है।
जिससे आवेदकगण तथा उनके परिजन सहित लगभग 300 लोग मानसिक रूप से प्रताड़ित होने के साथ साथ आर्थिक रूप से भी प्रताड़ित हो रहे हैं और अपना कोई कार्य नहीं कर पा रहे हैं। इस दशा में आवेदकगण की जानमाल की रक्षा के लिये एकमात्र सहारा कमिश्नर हैं। कहीं से न्याय मिलता न देख स्थानीय रहवासी पहुँचे कमिश्नर शहडोल के पास। अब कमिश्नर शहडोल के द्वारा इस मामले में क्या सुनवाई की जाती है जिसका इंतजार रहवासी कर रहे हैं।