कब्जाधारी की प्रबंधन से यारी कोल इण्डिया पर बहुत भारी।
शहडोल से संभागीय ब्यूरो मोहित तिवारी की रिपोर्ट।
संजय नगर में शिफ्ट प्रबंधक के निवास की छत की गिरी दीवार।
रेल्वे कॉलोनी के कंटेनमेण्ट एरिया में कब्जे के आवास पर ठीक हो कर लौटता कोरोना मरीज,
पानी के लिए फिल्टर प्लाण्ट के दरवाजे पर धरना देती श्रमिक कॉलोनियों की महिलाएं।
धनपुरी। इन दिनों सोहागपुर एरिया में कब्जाधारियों का राज चल रहा है। उन पर प्रबंधन की सरपरस्ती कुछ इस तरह है कि किसी कब्जाधारी के घर पर कोरोना पॉजिटिव्ह निकल आता है तो पूरा जिला प्रशासन और कॉलरी प्रबंधन सकते में आ जाता है। उस पूरे एरिया को कंटेनमेनट जोन बना दिया जाता है। जहाँ पर कोरोना मरीज निकलता है लेकिन उससे भी बड़ी बात जिसने कोल इण्डिया के लिए बड़ी चुनौती पेश कर दी है, वह यह कि आखिर किस आधार पर एक कब्जाधारी खुले आम कॉलरी के कंपनी क्वार्टर में रहता है और जब कोरोना पॉजिटिव्ह निकलता है तो दर्जनों कॉलरी कर्मचारी क्वारंटीन कर दिए जाते हैं। उन्हें बैठाकर पगार दिया जाता है तथा कॉलरी कर्मचारियों को बेठे-बैठे का वेतन और दूसरे भत्ते दिए जाते हैं।
कोरोना का पनाहगाह बनीं कॉलरी कॉलोनियां:
इससे बड़ा सवाल पैदा हो गया है कि आखिर प्रबंधन से कब्जाधारियों की कैसी यारी? अभी हाल ही में रेल्वे कॉलोनी के बीचोंबीच एक कॉलरी क्वार्टर जिसमें निवास करने वाला व्यक्ति कुछ साल पहले रिटायर हो चुका था अभी भी दबंगई से रह रहा है। उसका बेटा दिल्ली से लौटा और पॉजिटिव्ह निकला तो प्रबंधन ने कार्रवाई तो दूर उल्टा उन बेकसूर अपने कर्मचारियों को क्वारंटीन रहने का आदेश थमा दिया जिनका कोई कुसूर नहीं। उल्टा उन्हें घर बैठे वेतन तक देना पड़ेगा जो कि कई लाख रुपए होगी।
इसी तरह जब सोहागपुर कोयलांचल में पहली बार एक संदिग्ध महिला चीप हाउस में निकली थी, बाद में जिसकी मौत जबलपुर में हो गई थी के चलते भी पूरे चीप हाउस के बड़े हिस्से को कंटेनमेनट जोन बनाकर वहाँ भी दर्जनों कॉलरी कर्मचारियों को क्वारंटीन कर उन्हें मुफ्त की पगार दी गई, लेकिन बड़ा सवाल जिसका कोई जवाब प्रबंधन के पास नहीं है। वह यह कि न तो वो कब्जाधारी आज तक हटे जिनके चलते कॉलरी प्रबंधन को लाखों-लाख रुपए का भुगतान अपने क्वारंटीन कामगारों को देना पड़ा बल्कि उन कब्जाधारियों का आज तक बाल बांका नहीं हो सका जिनके चलते कोल माइन्स को चपत लगी और लाखों रुपए का बेवजह भुगतान पड़ा।
पूरे एरिया में एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि कब्जाधारियों से प्रबंधन की कैसी यारी और प्रबंधन क्यों है कब्जाधारियों के आगे सरेण्डर। जिससे जहाँ करोड़ों रुपये की बिजली पानी का पहले ही हर महीने फूंककर नुकसान किया जा रहा है। वहीं कब्जाधारी प्रबंधन को आँखें दिखाकर धड़ल्ले से दादागीरी कर कॉलरी के क्वार्टर में रहते हैं और प्रबंधन की छाती पर मूंग दलते हैं।
आखिर प्रबंधन के वो कौन से अधिकारी हैं जो अवैध कब्जाधारियों के आगे नतमस्तक हैं लेकिन इससे भी बड़ी बात यह कि जब एरिया में बैठे कॉलोनियों की देखरेख करने वाले तमाम आकाओं को इसकी जानकारी होती है तो फिर अवैध रूप से रहने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो पाती है।
अफसरों तक के बंगले नहीं सुरक्षित:
बीते दिनों सोहागपुर की संजय नगर कॉलोनी में एक शिफ्ट प्रबंधक के कंपनी आवास की छत का काफी बड़ा हिस्सा भरभरा कर गिर गया। संयोग से अधिकारी दूसरे में कमरे था जिससे कोई जनहानि नहीं हो पाई। बताते हैं कि दुर्भाग्यवश यदि गिरा मलब किसी के ऊपर गिर जाता तो बहुत बड़ी अप्रिय घटना तक हो जाती। इसके बाद जब यह खबर सोशल मीडिया के इस दौर में वायरल हुई तो सब एरिया मैनेजर ने उस अधिकारी को तलब कर लिया। बताते हैं कि उसको धमकी भरे अंदाज में कहा गया कि खबर बाहर कैसे गई। अब प्रबंधन के ऐसे गैर जिम्मेदार अधिकारी को यह कौन बताए कि खबर वैसे ही बाहर आई थी जैसे कुछ बरस पहले शांतिनगर कॉलोनी के पास के एक मंदिर के पास हादसे में एक स्कूल बस एक व्यक्ति की मौत के बाद गाँव वालों की आफत इसी पर टूटी थी। अब पता चला है कि उस अधिकारी से कहा जा रहा है कि मकान बदल ले, लेकिन कौन से मकान में जाए जितने भी खाले पड़े हैं सभी की हालात खासकर छतों की वैसी ही है कि अब गिरी की तब।
पीने के पानी की बूंद-बूंद को मोहताज श्रमिक:
कुछ इसी अंदाज में इन दिनों पानी की आपूर्ति को लेकर सोहागपुर एरिया में बड़ा तमाशा चल रहा है। इस संबंध में पता चला है कि हाल ही में फिल्टर प्लाण्ट प्रभारी का तबादला क्या हुआ जैसे पूरा फिल्टर प्लांट अपाहिज हो गया। बूंद-बूंद पानी की समस्या को लेकर श्रमिक पहले सड़कों पर आए फिर फिल्टर प्लांट में ही धरने पर बैठ गए लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह सामने आई कि अधिकारियों और बाबुओं की कॉलोनी में किसी कदर हर रोज आपूर्ति की जाती रही लेकिन मेहनतकश कॉलरी श्रमिक उमस भरी गर्मी में 4 से 6 दिन तक बराबर पानी नहीं मिलने से बेहद परेशान हैं। इधर सूत्रों की मानें तो सोहागपुर एरिया के मुखिया ने झूठे कागज महल के सहारे सोहागपुर जीतने की जंग का दिन दहाड़े झूठा सपना क्या देख लिया लगता है कि बस अब वही एरिया के सरताज हैं।
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क्या कोरोना का डर क्या कब्जाधारियों पर कार्यवाही किसी की जरूरत नहीं। उनका और उनको चने के पेड़ पर चढ़ाने वालों का जादू का डण्डा ज्यों घूमेगा जहाँ चाहेंगे वहीं नई खदाने शुरू हो जायेंगी और जस हुजूर के खाते में चला जाएगा। जबकि ऐसा नहीं है, सोहागपुर की तासीर समझने वाले सोहागपुर एरिया की ऐसी दुर्दशा पहले कभी नहीं होने का दावा करते हुए कहते हैं कि लगातार 3-4 साल से अरबों का घाटा उठाने वाले सोहागपुर को अगले वित्त वर्ष में कहीं और भी ज्यादा रिकॉर्ड घाटा न उठाना पड़े क्योंकि पूरे एरिया का कोई मालिक मुखिया दिखता नहीं।
क्षेत्र का मुखिया झूठी वाहवाही की फुलहरी खाकर प्रबंधन की सेहत बनाने में जुटे हैं तो उनके अधीन कुछ चापलूस कर्मचारियों को करीबी क्या मिली रात को दिन और दिन को रात बताने में हाँ में हाँ मिला सोहागपुर में बदइन्तजामी का नया अध्याय लिखवाने में अपनी आहुति दे रहे हैं। अच्छा होता कि कोल इण्डिया मुख्यालय और बिलासपुर मुख्यालय सोहागपुर के नए प्रोजेक्ट की शुरुआत के लिए गंभीर और सबको लेकर सहमति बनाकर सर्वमान्य हल ढ़ूंढ़ सोहागपुर की तकदीर और तदबीर बदलने वाले प्रबंधन की तैनाती करता जिससे सोहागपुर अपनी खोई हुई गरिमा को फिर से पा सके।