कृषी विधेयक मोदी सरकार के कॉर्पोरेट प्रेम का एक और नमूना -सजप
भाजपा सरकार जनविरोधी कृषी बिल वापस ले।
जब देश का किसान और आमजनता महामारी से जूझ रही है, तब मोदी सरकार कॉर्पोरेट हित में तीन कृषी कानूनों में परिवर्तन कर रही है। इन तीनो बिलों में कॉर्पोरेट संरक्षण के लिए सारी बातें हैं, लेकिन इसमें किसान के हित का कही जिक्र तक नहीं है यहाँ तक कि उसकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी करने तक की बात नहीं है। इससे ना सिर्फ किसान और आम ग्राहक भी कॉर्पोरेट चुंगल में फंस जाएगा बल्कि इस बिल का बुरा असर किराना व्यापारीयो, अनाज व्यापारियों आदि पर भी पड़ेगा। आज जारी विज्ञप्ती में समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी ने इन जन विरोधी बिल को वापस लेने की मांग की है।
मोदी ने बताया इन तीन बिलों के बाद आने वाले सामी में ना सिर्फ मंडिया खत्म हो जाएगी बल्कि किसान ठेके पर खेती के जरिए कॉर्पोरेट के जाल में फंस जाएगा। और, धीरे-धीरे सरकारी खरीदी बंद होने से राशन की दुकाने भी बंद हो जाएगी। इन बिलों के जरिए सरकार ने कॉर्पोरेट को ना सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी से ही बहार कर दिया है बल्कि उन्हें उपज की स्टॉक सीमा से भी बहार कर दिया है। जैसा जिओ डेटा पैक में ह़ुआ, आने वाले समय में कुछ बड़े कॉर्पोरेट मिलकर अनाज और दलहन आदि का बड़े पैमाने पर स्टॉक कर सकते है और फिर आमजनता को मजबूरी में इन कंपनियों का माल ही इनके तय दाम पर खरीदना होगा। इस बात का पता कानून में निम्न परिवर्तन से चलता है: सरकार ने आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक की धारा 3 में ऐसा परिवर्तन किया है, जिसके बाद सरकार कीमतों के मामले में तबतक दखल नहीं करेगी जबतक किसी भी वस्तु की खुदरा कीमत फल-सब्जी के मामले में दुगनी तक नहीं बढ़ जाती और गेंहूं, चावल अदि अनाज के मामले में डेढ़ गुना तक नहीं बढ़ जाती और यह दखल भी सरकार युद्ध, अकाल जैसी विशेष परीस्थिती में ही करेगी; सामान्य स्थिती में नहीं और उसमे आगे भी अनके शर्ते हैं।
मोदी ने बताया कि शुरू में कॉर्पोरेट पर मंडी टैक्स आदि नहीं लगने से उन्हें लगभग 150 बोरे का लाभ होगा और वो किसानों को लालच देने के लिए शुरूआत में अच्छा भाव दे सकते हैं, मगर एक बार सरकारी खरीदी बंद होने पर वो अपनी मनमानी करेंगे। इतना ही नहीं, अगर कभी विदेशों से सस्ता गेहूं या दाल आ गई तो किसानों की फसल कोई नहीं खरीदेगा। या वो किसी एक राज्य से अपनी खरीदी का कोटा पूरा कर सकते हैं। कॉर्पोरेट किसान को उनकी जरुरत की फसल उगाने के लिए मजबूर कर सकते हैं जिससे इलाके में अनाज का संकट भी हो सकता है। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने संसद के वर्तमान सत्र में तीन कृषी विधेयक लाई है; यह है: आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण विधेयक, कृषक सशक्तिकरण और संरक्षण कीमत आश्वाशन और कृषी सेवा पर करार। इन बिल को लेकर अनुराग मोदी ने सजप की ओर से भाजपा से कुछ सवाल किए हैं:
अगर किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में जाकर फसल बेच सकता है, तो फिर दूसरे राज्य की फसल आने से मध्यप्रदेश में भाव का क्या होगा? अगर निजी खरीददार का कोटा किसी अन्य राज्य में पूरा हो गया, तो मध्यप्रदेश के किसानों की फसल कौन खरीदेगा? सरकार को नहीं मालूम उसके पास कितना माल आएगा, तो फिर वो खरीदी की तैयारी कैसे करेगी? सरकारी खरीदी केंद्र का क्या होगा? और किस केंद्र पर कितना माल आएगा यह मालूम नहीं होने पर हर केंद्र का खरीदी कोटा कैसे तय होगा? और खरीदी केंद्र कहाँ लगाना है, यह कैसे तय होगा? अगर कॉर्पोरेट खरीदारों ने किसानों की पूरी फसल खरीद ली, तो फिर सरकार राशन दुकान के लिए गेंहूं आदि कहाँ से खरीदेगी? अगर सरकारी खरीदी नहीं हुई तो मध्यान्ह भोजन और अंत्योदय अन्न योजना जैसी पोषण की अनेक योजनाओं का क्या होगा?