“काशी गंगा जमुनी संस्कृति का ह्रदय स्थल।”
“विश्व संस्कृति दिवस पर नमामि गंगे ने किया संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का आवाह्न।”
“गंगा घाटों पर गूंजा न करें ढिलाई, मास्क में ही भलाई।”
वाराणसी से रोहित सेठ की रिपोर्ट।
विश्व संस्कृति दिवस 21 मई के अवसर पर नमामि गंगे ने काशी की सांस्कृतिक धरोहर सहेजने की अपील की है। कोरोना से बचाव हेतु घाटों पर चले जागरूकता कार्यक्रम के दौरान सभी से मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाए रखने की अपील भी की है। संयोजक श्री राजेश शुक्ला ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की अमूल्य धरोहर है। विश्व में यह सर्वत्र अनुपम है। काशी की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा भी वैश्विक सभ्यता के लिए धरोहर है।
5 हजार वर्ष पुराने महाभारत से भी कई हजार साल पुराने ग्रन्थ रामायण में काशी का वर्णन आता है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है। कुल मिलाकर काशी यानी वाराणसी को देश का सबसे प्राचीन शहर माना जाता है। चन्द्राकार उत्तरवाहिनी पावन गंगा के किनारे बसी विश्वनाथप्रिया काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर है। भगवान् शिव के त्रिशूल पर बसी त्रैलोक्य न्यारी मोक्षदायिनी काशी को शिव नगरी के रूप में भी जाना जाता है। काशी की आत्मा मां गंगा में बसी है। गंगा सनातनी संस्कृति की जीवन रेखा है। काशी में बहती उत्तरवाहिनी गंगा अर्थव्यवस्था का मेरुदंड और भारतीय अध्यात्म का सार हैं। यहां की गलियां, मठ, मंदिर, संस्कृति, परम्परा आदि पूरे भारतवर्ष में अद्वितीय है। स्कंदपुराण के काशी खण्ड में यहां के तीर्थों, घाटों का आख्यान, गंगा महिमा, वाराणसी महिमा, ज्ञानवापी माहात्म्य, त्रिलोचन आविर्भाव आदि का उल्लेख आता है। वाराणसी केवल हिन्दुओं के लिए ही खास नहीं है यहां से कुछ किलोमीटर दूर सारनाथ है, जहां गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को पहला उपदेश दिया था। संस्कृत पढ़ने से लेकर मोक्ष प्राप्ति तक के लिए प्राचीनकाल से ही लोग वाराणसी आया करते हैं और ये क्रम आज भी जारी है। दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। काशी की परंपरा और संस्कृति एक ऐसे खजाने की तरह है जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती। पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में बस बढ़ती ही रहती है। काशी की संस्कृति गंगा जमुनी संस्कृति कही जाती है। काशी अनेक महापुरुषों की गाथाओं का परिचायक रही है। अगर काशी की परंपरा और सांस्कृतिक विरासत को इसी तरह आगे बढ़ाना है तो बस जरूरत है इसे और संजोने की, इसे संरक्षित रखने की, इसकी अहमियत दुनिया को बताने की।
साभार: राजेश शुक्ला गंगा सेवक नमामि गंगे, वाराणसी।
वाराणसी से रोहित सेठ की रिपोर्ट।