मुलताई। ट्रेनें रद्द करने का कर्नाटक सरकार का फैसला प्रवासी श्रमिकों को बंधुआ मजदूर बनाने का षड्यंत्र।
मुलताई से अफ़सर खान की रिपोर्ट।
सर्वोच्च न्यायालय श्रमिकों के संवैधानिक अधिकार बचाने के लिए आगे आए:डॉ.सुनीलम।
प्रिय साथियों जिंदाबाद।
आपने अखबारों में पढ़ा होगा तथा टीव्ही पर देखा होगा कि कर्नाटक में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा द्वारा बैंगलोर से जाने वाली बस ट्रेन रद्द कर दी गई हैं।
यह श्रमिकों को फिर से बंधुआ मजदूर बनाने की साजिश है। भारत का संविधान हर व्यक्ति को बिना अवरोध के स्वतंत्र रूप से देश भर में आनेजाने की इजाजत देता है। भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार देश के सभी नागरिकों पर समान कानून लागू होना चाहिए लेकिन विदेश में बसे नागरिकों को 64 हवाई जहाजों से देश में लाया जा रहा है। कई राज्यों के बीच रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैं। यही अधिकार कर्नाटक में बसे प्रवासी मजदूरों को भी मिलना चाहिए।
कोई भी आर्थिक पैकेज का लालच देकर, दबाव डालकर प्रवासी मजदूरों को रोकना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
जिस पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संज्ञान लेकर ‘सु मोटो’ राज्य सरकार को मजदूरों की वापसी की व्यवस्था करने का निर्देश देना चाहिए।
सरकारों को यदि वास्तव में उद्योगों की इतनी चिंता है तो उन्हें लॉकडाउन होते ही उद्योगपतियों को सभी सुविधाएं देने के लिए निर्देशित करना था। यदि मजदूर तैयार हो तो मालिक एम्प्लॉयर उनके साथ लौटने का अनुबंध कर सकता था। उनके लौटने के 15 दिन बाद टिकट का इंतजाम कर सकता था।
कोरोना संक्रमण की आड़ में केंद्र सरकार और राज्य सरकारें श्रम कानूनों को पूरी तरह खत्म करने पर आमादा हैं। देश के सभी श्रमिक संगठन और जन संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। इस मुद्दे पर भी सर्वोच्च न्यायालय को संज्ञान में लेकर श्रमिक हित में एवं संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में आगे आना चाहिए।